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सामान्य अध्ययन जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, किसी खास विषय का गहरा अध्ययन न होकर विभिन्न-विभिन्न विषयों का ऐसा अध्ययन है जिसके लिए किसी अनुसन्धान या विशेषज्ञता की जरुरत नहीं है संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा से सम्बंधित अपनी अधिसूचना में सामान्य अध्ययन का अर्थ स्पस्ट करते हुए लिखा है –
“सामान्य अध्ययन में ऐसे प्रश्न पूछे जायेंगे जिनके उत्तर एक सुशिक्षित व्यक्ति बिना किसी विशेषज्ञता पूर्ण अध्ययन के दे सकता है ये प्रश्न बहुत से ऐसे विषयों में उम्मीदवार की जानकारी या जागरूकता का स्तर जांचने के लिए पूछे जायेंगे जिनकी प्रासंगिकता सिविल सेवाओं में कार्य करने के दौरान होती है. प्रश्नों के माध्यम से सभी प्रासंगिक मुद्दों पर उम्मीदवार की मूल समझ परखने के साथ-साथ इस बात की भी जांच की जायेगी कि उसके पास परस्पर विरोधी सामजिक –आर्थिक लक्ष्यों तथा मांगो के विश्लेषण की कितनी योग्यता हैं ?”
सच कहा जाए तो संघ लोक सेवा आयोग द्वारा की गयी यह घोषणा सिर्फ औपचारिक महत्त्व की है वास्तविकता यह है की सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्र में कई बार प्रश्न इतने क्लिस्ट और गहरे स्टार के होते हैं की उस विषय के विशेषज्ञ भी उनका उत्त्तर नहीं दे पाते
सामान्य अध्ययन सिविल सेवा परीक्षा के पाठ्यक्रम में प्रारम्भ से शामिल रहा है किन्तु इसका महत्त्व हमेशा बराबर नहीं रहा संघ लोक आयोग ने 2011 एवं 2015 में प्रारम्भिक परीक्षा तथा 2013 में मुख्य परीक्षा के पाठ्यक्रम व् परीक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार किये हैं. जिसके कारण सामान्य अध्ययन की भूमिका पहले की तुलना में काफी बढ़ गयी है तथ्यों के आधार पर कहें तो जहाँ 2011 से पहले प्रारम्भिक परीक्षा के कुल 450 अंकों में से सामान्य अधययन का योगदान 150 अंको (33.33%) का था, वही 2011 से लागू नविन प्रणाली में इसका योगदान बढ़कर 400 में से 200 अंकों (50%) का हो गया है ; जबकि 2015 से प्रारम्भिक परीक्षा में CSAT क्वालीफाइंग हो जाने की वजह से प्रारम्भिक परीक्षा में सामान्य अध्ययन का महत्त्व बहुत जादा बढ़ गया है क्युक अब प्रारम्भिक परीक्षा में कट ऑफ का निर्धारण सामान्य अध्ययन (प्रथम प्रश्न पत्र ) के आधार पर ही होगा. इसी तरह , मुख्य परीक्षा(साक्षात्कार सहित) में सामान्य अध्ययन का महत्त्व 2012 तक कुल 2300 अंकों में से सिर्फ 600 अंकों का (अर्थात लगभग 26%) था जबकि अब कुल 2025 अंकों में से 1000 अंकों का (अर्थात लगभग 49.4%) हो गया है
इन परिवर्तनों को इस दृष्टि से भी समझना आवश्यक है कि उम्मीदवारों की तैयारी की प्रक्रिया पर इनका क्या प्रभाव पड़ने वाला है? जहाँ तक प्रारम्भिक परीक्षा की बात है , 2010 तक इस परीक्षा में वैकल्पिक विषय की तैयारी कर लेना पर्याप्त माना जाता था और अधिकाँश उमीदवार सामान्य अध्ययन को बहुत कम महत्त्व देते थे. 2011 में वैकल्पिक विषय को प्रारम्भिक परीक्षा से पूरी तरह हटा दिया गया और इसके स्थान पर CSAT (सिविल सेवा अभिवृत्ति परीक्षा) को शामिल किया गया इसका परिणाम यह हुआ की वैकल्पिक विषय में विशेषज्ञता के दम पर सफल होना सम्भव नहीं रहा चूँकि 2015 की प्रारम्भिक परिख्सा से CSAT को क्वालीफाइंग कर दिया गया है, इसलिए सभी विद्यार्थियों के लिए यह जरुरी हो गया है की प्रारम्भिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए प्रथम प्रश्न पत्र यानी सामान्य अध्ययन को बहुत गहराई और समझ से तैयार करें
आशय यह है कि प्रारम्भिक स्तर की परीक्षा को गंभीरता से लें. उपरोक्त परिवर्तनों का आशय समझते हुए उसी के अनुरूप अपनी तैयारी को सारगर्भित एवं परिक्षान्मुख बनाएं
सामान्य अध्ययन के प्रश्न पाठ्यक्रम में शामिल विभिन्न खंडो/विषयों से किस अनुपात में पूछे जायेंगे, ये निश्चित नहीं है.आमतौर पर इतिहास, राज-व्यवस्था पारिस्थितिकी पर्यावरण,अर्थव्यवस्था और भूगोल से जादा प्रश्न पूछे जाते हैं नीचे दी गयी तालिका में आप देख सकते हैं की 2011 से 2015 तक विभिन्न खण्डों से पूछे जाने वाले प्रश्न-
विषय | 2011 | 2012 | 2013 | 2014 | 2015 |
भारत का इतिहास और स्वाधीनता आन्दोलन | 13 | 20 | 16 | 19 | 16 |
भारतीय संविधान व् राज-व्यवस्था | 10 | 21 | 17 | 10 | 13 |
भारत का और विश्व का भूगोल | 16 | 17 | 18 | 20 | 18 |
पारिस्थतिकी, पर्यावरण और जैव-विविधता | 17 | 14 | 14 | 20 | 12 |
भारत की अर्थव्यवस्था, आर्थिक और सामजिक विकास | 22 | 14 | 18 | 11 | 16 |
सामान्य विज्ञान | 16 | 10 | 16 | 12 | 09 |
राष्ट्रीय और वैश्विक महत्त्व की समसामयिक घटनाएं/विविध | 06 | 04 | 01 | 08 | 16 |
कुल | 100 | 100 | 100 | 100 | 100 |
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रणनीति के कुछ अनछुये पहलु |
“प्रिय अभ्यर्थियों ये तो सर्वविदित है की हम सभी बड़े सपने लेकर संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी करने डेल्ही और इलहाबाद और विभिन्न जिलो में जातें हैं , परन्तु सही मार्ग दर्शन की कमी , परीक्षान्मुख विषयवस्तुओं की अनुपलब्धता तथा महंगे कोचिंग फीस के कारण हताश और भटक जाते हैं . लेकिन आपको ज्ञात ही होगा की संघ लोक सेवा आयोग ने मुख्य परीक्षा के अपने नए पाठ्यक्रम में ‘नीतिशास्त्र,सत्यनिष्ठा एवं अभिरुचि’ विषय को सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-4 में जोड़ा है, कारण की देश को ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोकसेवक मिल सके जो देश के नागरिकों के हित में सदैव तत्पर रहे. ऐसी ही ईमानदारी और सत्यनिष्ठा आप सभी को अपने तैयारी के दौरान दिखानी होगी. क्योंकि मात्र किताबी ज्ञान से आप कुछ हांसिल नहीं कर पायेंगे जब तक आप सुचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (इन्टरनेट) का सकरात्मक उपयोग नहीं करते. अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी का चयन दर अपेक्षाकृत अधिक होने का कारण यही है की वे सभी इन्टरनेट का उपयोग ज्ञान अर्जन हेतु करते हैं. का निर्माण कर रहे हैं जहाँ आप हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी और अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी भी अपने ज्ञान के आधार को विस्तृत कर पायेंगे. कहते हैं न की “ तैयारी इतनी ख़ामोशी से करो की सफलता शोर मचा दे “ दोस्तों बहुत बड़े सपने देखना अच्छी बात है परन्तु हर बड़ा लक्ष्य प्रतिबद्धता मांगता है निरंतर अभ्यास मांगता है” ϒ अभ्यास की महत्ता। ϒ एक लड़का बहुत ही मन्द बुद्धि था। उसे पढ़ना-लिखना कुछ न आता था। बहुत दिन पाठशाला में रहते हुए भी उसे कुछ न आया… तो लड़कों ने उसकी मूर्खता के अनुरूप उसे.. ‘बरधराज’ अर्थात् ‘बैलों का राजा’ कहना शुरू कर दिया। घर बाहर सब जगह उसका अपमान ही होता।एक दिन वह लड़का बहुत दुखी होकर पाठशाला से चल दिया और इधर-उधर मारा-मारा फिरने लगा। वह एक कुँए के पास पहुँचा और देखा कि किनारे पर रखे हुये जगत के पत्थर पर रस्सी खिंचने की रगड़ से निशान बन गये है। लड़के को सूझा कि- “जब इतना कठोर पत्थर रस्सी की लगातार रगड़ से घिस सकता है तो क्या मेरी मोटी बुद्धि लगातार परिश्रम करने से न घिसेगी।” वह फिर पाठशाला लौट आया और पूरी तत्परता और उत्साह के साथ पढ़ना आरम्भ कर दिया, उसे सफलता मिली। ‘व्याकरण शास्त्र’ का वह उद्भट विद्वान् हुआ। “लघु सिद्धान्त कौमुदी” नामक ग्रन्थ की उसने रचना की, जो संस्कृत व्याकरण का अद्भुत ग्रंथ है। उसके नाम में थोड़ा सुधार किया गया- ‘बरधराज’ की जगह फिर उसे “वरदराज” कहा जाने लगा। इसी पर एक दोहा बना….. “करत-करत अभ्यास से जडमति होत सुजान। अर्थात:- जिस तरह कुवें की जगत के पत्थर पर बारबार रस्सी के आने-जाने की रगड से निशान बन जाते हैं, उसी प्रकार लगातार अभ्यास से अल्पबुद्धि भी बुद्धिमान बन सकता है। दोस्तों सपनों को पूरा करें खूब परिश्रम करें लगन से जुट जाएँ सफलता आपके कदम चूमेगी …………………………..शुभेच्छा के साथ !! |
इतिहास की तैयारी अगर उचित रंन्नीति के साथ नहीं की जाए तो वह उबाऊ एवं बोझिल हो जाता है अध्ययन की सुविधा हेतु इतिहास एवं संस्कृति खंड के अंतर्गत नए पाठ्यक्रम को निम्न पांच खंडो में बांटा जा सकता है
- भारतीय संस्कृति
इस खंड के तहत प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप , साहित्य एवं वास्तुकला के मुख्य समूह अन्तर्निहित होंगे किसी राष्ट्र के विरासत का निर्माण साहित्य ऐतिहासिक साक्ष्य, स्थापत्य कला, इत्यादि के चल एवं अचल घटकों के सम्मामेलन से होता है इस खंड को सामान्यतः तीन उपखंडों में विभाजित किया जा सकता है
- दृश्य कला
- स्थापत्य कला (नागर शैली, द्रविण शैली. वेसर शैली, इंडो-इस्लामिक शैली, विक्टोरियन शैली इत्यादि)
- शिल्पकला (गांधार शैली, मथुरा शैली, अमरावती शैली इत्यादि)
- चित्र कला (प्राक इतिहास, अजन्ता एवं बाघ चित्रकला,मिनिएचर चित्रकला, मुग़ल चित्रकला, राजपूत शैली, पहाड़ी शैली, पटना कलम शैली, मधुबनी पेंटिंग्स, मंजुसा पेंटिंग्स इत्यादि)
- संगीत, नृत्य, थियेटर, सर्कस, इत्यादि
- भाषा, हस्तशिल्प, धर्म, इत्यादि
- आधुनी भारतीय इतिहास (18वीं सदी के मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास)
इस खंड के तहत ब्रिटिश कंपनी का भारत में विस्तार, भारत में ब्रिटिश आर्थिक प्रशासनिक नीति एवं उसका प्रभाव, ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति, भारतीय प्रतिक्रिया यथा- जनजातीय विद्रोह, नागरिक विद्रोह, १८५७ का विद्रोह, राष्ट्रवाद का उदभव एवं विकास, स्वातंत्र्योत्तर भारत में आयोजन प्रक्रिया एवं विकास, कम्मू एवं कश्मीर मुद्दा, सम्पूर्ण क्रान्ति, भूदान आन्दोलन, हरित क्रान्ति, नाक्सालवाद का उदभव ,बोडो आन्दोलन, आपातकाल की परिस्थितियां तथा विभिन्न सामजिक आन्दोलन इत्यादि
- स्वतंत्रता संघर्ष :- इस खंड के तहत १८८५ से लेकर १९४७ तक के भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का विस्तार से अध्ययन अनिवार्य है. कांग्रेस की स्थापना से लेकर गांधीवादी आन्दोलन तक की पूरी घटना इस खंड में समाहित है. लेकिन हालिया बदलाव एवं ट्रेंड को देखते हुए इस उपखंड के तहत संवेधानिक विकास, गवर्नर जनरल एवं वायसराय की भूमिका, स्वतंत्रता आन्दोलन में श्रमिक वर्ग एवं पूंजीपतियों की भूमिका, क्षेत्रीय नेताओं की भूमिका, महिला एवं महिला संगठनों इत्यादि की भूमिका का अध्ययन करना है
- स्वतंत्रता के बाद देश के अन्दर समेकन एवं पुनर्गठन
यह उपखंड सामान्य अध्ययन के पाठ्यक्रम में नया समाहित किया गया है. यज खंड स्वतंत्रता के उपरान्त भारतीय विकास के राजनैतिक अर्थशास्त्र को समग्रता में प्रस्तुत करता है. स्वतंत्रता के उपरान्त औपनिवेशिक निम्न आर्थिक विकास, सकल गरीबी, सामाजिक असमानता इत्यादि समस्याएं हमारे समक्ष थी, साथ ही भारतवासियों एवं नेताओं के द्वारा राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को आत्मविश्वास के साथ प्रारम्भ किया गया अतः इस खंड के तहत निम्न महत्वपूर्ण मुद्दों का अध्ययन करेंगे. भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन, राज्यों का एकीकरण, भूमि सुधार एवं जमीदारी उन्मूलन, भारत में आयोजन, भारत में सहकारिता आन्दोलन इत्यादि.
अध्ययन सन्दर्भ | |
1.
2.
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बिपिन चंद्रा – आजादी के बाद भारत
एनसीआरटी – स्वतंत्रता के पश्चात भारत
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- विश्व इतिहास पाठ्यक्रम में, नया समाहित यह खंड विद्यार्थियों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण है यदि इस पाठ्यक्रम का गहनता से विश्लेषण किया जाए तो इस खंड को निम्न अध्यायों में बांटा जा सकता
18वीं सदी का इतिहास | औद्योगिक क्रान्ति, अमेरिकी क्रान्ति, फ्रांसीसी क्रान्ति, |
19वीं सदी का इतिहास | नेपोलियन, जेर्मनी-इटली का एकीकरण |
20वीं सदी का इतिहास | रुसी क्रान्ति, प्रथम विश्वयुद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध कारण एवं परिणाम, शीत युद्ध- कारण, विकास, साम्यवाद का पतन |
नोट :- उपरोक्त बॉक्स में दर्शाए गए विषयों के अतिरिक्त उपनिवेशवाद, उपनिवेशवाद की समाप्ति, साम्यवाद, पूंजीवाद, समाजवाद इत्यादि का अध्ययन अतिआवश्यक है
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
अद्भुत भारत खंड -१ एवं खंड -२ (ए.एल बाशम/एस. एस. रिजवी) | |
भारतीय कला का परिचय, एनसीईआरटी क्लास –11th | |
एनसीईआरटी कक्षा 11th & 12th | |
आधुनिक भारत का इतिहास – बिपिन चंद्रा, सुमित सरकार, बी.एल. | |
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इस भाग में शामिल विषयवास्तु वर्तमान सामाजिक बोध के विकास की अवधारणा क देखते हुए महत्वपूर्ण है सामाजिक बोध के विकास हेतु व्यक्ति, समूह एवं समुदाय के बीच के गतिशील संबंधों को ध्यान में रखा जाना चाहिए. सामजिक बोध से युक्त व्यक्ति मानवाधिकार एवं मानवीय मूल्यों से सम्बंधित विषयों में दक्ष होता है . इतना ही नहीं सामजिक मुद्दों की अधिक जानकारी एक व्यक्ति को समाज के हित में कार्य करने तथा उत्तरदायित्व पूर्ण व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है
इस भाग के अंतर्गत दिए गए विषयों पर पकड़ बनाने के लिए सामाजिक संकल्पनाओं की समझ को विकसित करना जरुरी है. उद्धरण स्वरुप यदि “गरीबी” के विषय पर प्रश्न पूछा गया है तो, सामान्य से बेहतर उत्तर लेखन हेतु यह आवश्यक है की कुछ सैद्धांतिक पक्षों को शामिल किया जाए, साथ ही व्यवहारिक केस अध्ययन को भी शामिल किया जाए
विध्यार्थियों को समाज में हो रहे निरंतरता एवं परिवर्तन पर नजर रखनी चाहिए. यथा, बहुत से आधुनिक आव्रात्तियों के आगमन के बावजूद भी भारत में जातिव्यवस्था आज भी प्रभावी है. सयुंक्त परिवार के लगातार टूटने के उपरान्त भी अधिकतम भारतीय ऐसी पारिवारिक व्यवस्था से आज भी प्रभावित हैं
अतः यदि संकल्पनाओं की बेहतर समझ बन जाए तो आप सामाजिक विषयवस्तुओं को ठीक प्रकार से जान सकते हैं एवं नए पाठ्यक्रम के प्रश्नों का उत्तर कार्यकुशलता-पूर्वक कर पायेंगे
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 9th & 10th |
2. | भारतीय समाज की समस्याएं – श्री राम आहूजा |
3. | इग्नू के नोट्स |
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- विश्व के भौतिक भूगोल की मुख्य विशेषताएं
यह भाग सम्पूर्ण ग्लोब पर भौगोलिक संवृत्ति और प्रक्रिया के आधारभूत समझ की प्रतियोगियों से अपेक्षा रखता है इसमें चार क्षेत्रों के अध्ययन को प्रमुखता से महत्त्व दिया जाता है जैसे –भूमि, जल, वायु, और जैव भूगोल, साथ हीं इसे पर्यावरण की भी आधारभूत समझ का विकास होता है. इसमें निम्नलिखित भागों पर चर्चा की जाती है.
- भू- आकृति विज्ञान :
स्थालाकृतियाँ, स्थालाक्रितियों के विकास को प्रभावित करने वाले कारक, अंतर्जात और बहिर्जात बल तथा इनके परिणाम, पृथ्वी की उत्पत्ति तथा विकास, पृथ्वी के आतंरिक भाग की भौतिक दशा इत्यादि
- जलवायु विज्ञान :
मौसम तथा जलवायु विश्व के ताप और दाब कटिबंध तथा इनका ग्लोब पर प्रभाव, पृथ्वी का ऊष्मा बजट, वायुमंडलीय परिसंचरण, वायुमंडलीय स्थिरता एवं अस्थिरता, भूमंडलीय एवं स्थानीय पवनें, मानसून तथा जेट स्ट्रीम, वायु संहति तथा वाताग्र जनन,उष्ण उपोष्ण चक्रवात, वर्षा के प्रकार तथा वितरण, वैश्विक जलवायु परिवर्तन और इसमें मानव की भूमिका तथा उत्तर्दावित्व
- समुद्र विज्ञान :
अटलांटिक, हिन्द तथा प्रशांत महासागर की नितल स्थालाकृतियाँ, समुद्र का तापमान तथा लवणता, समुद्री निक्षेप, धरा, प्रवाह,तथा ज्वार भाटा जलीय संसाधन :- जैविक ऊर्जा
- जैव भूगोल :
मृदा तथा प्रकार, विशेषता, मृदा निम्नीकरण की समस्या एवं संरक्षण, पौधों तथा जंतुओं का विश्व वितरण तथा इसको प्रभावित करने वाले कारक वन अप्रोपन की समस्या तथा संरक्षण, बृहद जीन पूर्व केंद्र
- तृतीयक विज्ञान :
तृतीयक स्थालाक्रितियो के उदभव का कारण तथा विश्व वितरण भारत में तृतीयक स्थालाक्रितीय का जैव विविधता दृष्टिकोण से महत्त्व है
- विश्व के मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण
इस भाग में समूर्ण विश्व में आर्थिक दिशाओं के क्षेत्रीय वितरण का अध्ययन करना है
इसमें संसाधनों का वितरण तथ्यात्मक रूप से देखने के साथ ही उन कारकों का भी अध्ययन करना है जो इनके वितरण तथा विकास को प्रभावित करते हैं
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 11th –भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत |
2. | एनसीईआरटी कक्षा 11th & 12th मानव भूगोल के सिद्धांत |
3. | भारत एवं विश्व भूगोल – डी.आर. खुल्लर एवं महेश बर्णवाल |
4. | Previous year question papers (PYQP) |
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संविधान, राजनितिक व्यवस्था एवं शासन व्यवस्था तथा सामाजिक न्याय जैसे विषय एक दुसरे से अंतर्संबंधित हैं , इनमें अंतर करने हेतु विद्यार्थियों को इन विषयों के संकल्पना, दार्शनिक एवं व्यावहारिक मुद्दों पर बेहतर समझ बनाने की आवश्यकता है
‘संविधान’ आधारभूत सिद्धांतों एवं कानूनों, नियमों एवं विनियमों का एक समूह है जिसके माध्यम से राज्य या संगठन संचालित होता है इसमें सरकार के तीनो अंगों के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का वर्णनं होता है. राजनितिक व्यवस्था से तात्पर्य सरकार की एक व्यवस्था से है जबकि शासन व्यवस्था से तात्पर्य सरकार के संसाधनों के प्रबंधन से या सरकारी कार्यनीतियों के तरीकों से है. विद्यार्थियों को सर्वप्रथम संविधान का गहन अध्ययन करना चाहिए, सरकार के प्रकार एवं शासन के तौर तरीकों को भी दृष्टिगत रखते हुए, नविन पाठ्यक्रम में प्रशासनिक व्यवस्था, गैर सरकारी संगठन, स्वैक्षिक संगठन और शासन व्यवस्था पर इनके प्रभाव जैसे मुद्दों का विस्तार से अध्ययन करना चाहिए.
परपरागत रूप से इस भाग में संविधान, न्यायिक- प्रक्रियाओं आदि का अध्ययन किया जाता था जो पर्याप्त नहीं है
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
एनसीईआरटी कक्षा 11th & 12th | |
सुभाष कश्यप – 1. हमारा संविधान 2. हमारी संसद 3. हमारे न्यायपालिका | |
भारतीय राज-व्यवस्था – 1. लक्ष्मी कान्त 2. डी.डी. बासु | |
PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट | |
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सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय. विकास प्रक्रिया तथा विकास उद्ध्योग-गैर सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों विभिन्न समूहों और संघों दानकर्ताओं लोकोपकारी संस्थाओं, संस्थागत एवं अन्य पक्षों की भूमिका से प्रश्न पूछे जायेंगे साथ ही सामजिक न्याय से जुडी केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसँख्या के वंचित एवं अति सम्वेदनशील वर्गों के हितार्थ बनाए जाने वाले कल्याणकारी योजनाओं तथा इन योजनाओं से जुड़े कार्य-स्पादन से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. स्ववास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से सम्बंधित सामजिक क्षेत्र / सेवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित प्रश्न . गरीबी और भुख से सम्बंधित विषयों तथा शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस-अनुप्रयोग नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय.
- पाठ्यक्रम में अन्तर्निहित विषयवस्तु
भारत एवं इसके पडोसी राष्ट्र देशों में विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप के राष्ट्र जैसे –नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश श्रीलंका के साथ परस्पर द्विपक्षीय संबंधो एवं बहुपक्षीय संबंधो में तारतम्यता जिसमे सामजिक सांस्कृतिक राजनैतिक के साथ साथ सामरिक एवं आर्थिक संबंधो की महत्वता हो. इसके साथ हीं हेतु द.पू. एशियाई राष्ट्रों, मंगोलिया, कजाकिस्तान, ईरान इत्यादि राष्ट्रों के साथ संबंधो का भी अध्ययन करना हितकर होगा
द्विपक्षीय संबंधों में राष्ट्रीय हितों तथा मौलिक रूप से आर्थिक हितो को ध्यान में रखते हुए बनने वाले अंतराष्ट्रीय भागीदारों के समूहों में भारत की भूमिका का अध्ययन किया जाना चाहिए. भारतीय डायस्पोरा की भूमिका पुराने पाठ्यक्रम में समाहित रहा है परन्तु नए पाठ्यक्रम में इसे और विस्तारित किया गया है क्योंकि नए पाठ्यक्रम में “विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों की राजनीति एवं लोक्नितियाँ” को शामिल किया गया है. भारतीय डायस्पोरा की भूमिका विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों की राजनीति में लोक्नितियों के स्तर क्या क्या हैं? इसका भी अध्ययन किया जाना चाहिए.
अंतराष्ट्रीय संस्थाओं, संगठनों से सम्बंधित पाठ्यक्रम अधिक महत्वपूर्ण होने के साथ साथ विस्तारित हैं. इस खंड की तैयारी हेतु समसामयिक घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए अंतराष्ट्रीय संगठनों की संरचना, भूमिका का अध्ययन किया जाना चाहिए.
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 12th– भारत में लोकतंत्र : मुद्दे एवं चुनौतियाँ |
2. | भारत 2016 : भारत एवं विश्व अध्ययन |
3. | मासिक पत्रिकाएं – वर्ल्ड फोकस , इंडिया टुडे , फ्रंट लाइन |
4. | भारतीय विदेश मंत्रालय : वार्षिक प्रतिवेदन (www.mea.gov.in) |
5. | PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट |
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इस उपखंड में भारतीय अर्थव्यवस्था के अंतर्गत नियोजन के मुद्दे, संसाधनों के दोहन तथा आर्थिक संवृद्धि एवं विकास को शामिल किया गया है परन्तु विद्यार्थियों के लिए यह हितकर होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी परंपरागत विषयवस्तुओं यथा- कृषि, उद्योग, राष्ट्रीय आय इत्यादि का अध्ययन करने के साथ साथ उपर्युक्त विषयों को समसामयिक घटनाओं के साथ तालमेल रखते हुए अध्ययन किया जाना चाहिए.
नविन पाठ्यक्रम में अर्थव्यवस्था पर उदारीकरण के प्रभाव को रखा गया है, जाहिर है उदारीकरण का प्रभाव आर्थिक घटकों यथा कृषि, उधोग, बिमा, बैंकिंग इत्यादि पर वर्ष 1991 से हीं पड़ने शुरू हो चुके थे. उदारीकरण की नीतियों का अध्ययन किया जाना अभ्यर्थी से अपेक्षित है. उपर्युक्त दोनों बिन्दुओं के अध्ययन से भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारभूत समझ विकसित होती है तथा एक सामान्य समझ को विकसित किया जा सकता है
“सरकारी बजट” को नविन पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है, पिछले वर्षों में बजटीय कार्यक्रमों से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते रहे हैं. परन्तु अब बजट की व्यापक संकल्पना इसके प्रकार एवं प्रकृति इत्यादि का अध्ययन भी अपेक्षित है क्युक बजट के द्वारा विकास प्रक्रिया पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी होना एक लोकसेवक से अपेक्षित है. उदहारण स्वरूप बजट के द्वारा आर्थिक नीतियों में कुछ प्रयोग किये जाते रहे हैं जिसका सामाजिक आर्थिक विकास पर प्रभाव पड़ता है जैसे वर्ष 2005-2006 वित्तीय वर्ष से आउटकम बजट एवं जेंडर बजट की शुरुआत हुई जिसने आर्थिक मोर्चे पर विभिन्न बदलाव किये.
कृषि एवं उद्योग से सम्बंधित विषय वस्तुओं पर अत्यधिक बल दिया गया है यथा फसल प्रतिरूप, सिचाई के प्रकार एवं चुनौतियां, फसल प्रकार, भूमि सुधार, फ़ार्म सब्सिडी, खाद्य-प्रसंस्करण इत्यादि
भारत एक विकासशील राष्ट्र है जहाँ विकास गतिकी का संचालन तीव्रता पूर्वक हो रहा है. सामाजिक अवसंरचनाओ यथा शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण इत्यादि के साथ-साथ मौलिक अवसंरचनाएं यथा –सड़क, बिजली, पत्तन, रेलवे, वायुपत्तन इत्यादि के स्तर पर भी भूमि का निष्पादन किया जा रहा है. अतः इन तमाम पहलुओं पर भारतीय स्थिति, चुनौतियाँ, सुधार के लिए बनने वाले आयोगों इत्यादि का अध्ययन अभ्यर्थियों से अपेक्क्षित है
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 11th– भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास |
2. | एनसीईआरटी – भारत : लोग एवं अर्थव्यवस्था |
3. | PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट |
4. | आर्थिक सर्वेक्षण |
5. | आधार पुस्तकें – एस. एन. लाल / रमेश सिंह / मिश्र एवं पुरी |
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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी खंड सामान्य अध्ययन का महत्वपूर्ण क्षेत्र है इस खंड के अंतर्गत 100 से ज्यादा अंकों के प्रश्न विगत वर्षों में हुए परीक्षा में पूछे गए हैं. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी खंड में शामिल नए विषयों से सम्बंधित प्रश्न पूर्ववर्ती वर्षों में संघ लोक सेवा आयोग एवं एनी राज्य लोक सेवा आयोगों द्वारा पूछे जाते रहे हैं. यद्यपि इनका उल्लेख पुराने पाठ्यक्रम में नहीं किया गया था नए पाठ्यक्रम में इन विषयों का स्पस्ट उल्लेख किया गया है. यथा; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी :विकास एवं अनुप्रयोग रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव.प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण एवं नव-प्रौद्योगिकी का विकास. विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय उपलब्धियां.
उपर्युक्त नए शामिल विषयों के अतिरिक्त पुराने पाठ्यक्रम में उल्लेखित विषय वस्तुते निम्न हैं: सुचना प्रौद्योगिकी , अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनोटेक्नोलाजी, जैव्प्रध्योगिकी एवं बौद्धिक संपदा अधिकार से सम्बंधित विषयों के सम्बन्ध में जागरूकता.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास एवं अनुप्रयोग के तहत रक्षा, ऊर्जा, नाभिकीय तकनीकी, समुद्र तकनीक इत्यादि विषयों का स्पष्ट उल्लेख पाठ्यक्रम में नहीं है, जबकि इन विषयों से प्रश्न पूछे जा सकते हैं. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी खंड की तैयारी के अंतर्गत उल्लेखित विषयों के घटनाक्रम, अवधारणात्मक समझ एवं वर्तमान भारतीय सन्दर्भों में इसका महत्त्व इत्यादि शामिल है. साथ ही विगत वर्षो में आये प्रश्नों का विश्लेषण एवं अध्ययन भी आवश्यक है. वर्तमान विस्तारित पाठ्यक्रम के सन्दर्भ में कहना गलत न होगा की यह सिविल सेवा अभ्यर्थियों को संतुलित एवं समेकित बनाने में यह दिशा निर्देशक की भूमिका निभाएगा.
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 6th – 10th |
2. | ओल्ड एनसीईआरटी – विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी |
3. | PYQP / विज्ञान प्रगति / साइंस रिपोर्टर / इंडिया इयर बुक |
4. | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट |
5. | साइंस रिपोर्टर / भारत 2016 |
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संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रस्तावित नए पाठ्यक्रम में पर्यावरण से सम्बंधित प्रमुख विषयों को शामिल किया गया है जैसे – संरक्षण, पर्यावरण प्रदुषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन. उपरोक्त नए विषय मात्र एक रुपरेखा प्रस्तुत करते हैं, जो की स्वयं अपने आप में कई उप-विषयों को समाहित किये हुए है. जैसे – संरक्षण के सन्दर्भ में जैव-विविधता संरक्षण, वन्य जीवन संरक्षण, जल संसाधन संरक्षण इत्यादि. इसी प्रकार पर्यावरण प्रदुषण और क्षरण के अंतर्गत मुलभुत अवधारणा, कारण एवं प्रभाव. इनसे निपटने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय प्रयास, नीतियाँ एवं विधियाँ इत्यादि. पर्यावरण प्रभाव आंकलन के सन्दर्भ में मुलभुत अवधारणा, उद्देश्य, भारत में पर्यावरण प्रभाव का आंकलन एवं तरीकों इत्यादि का अध्ययन भी शामिल है.
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उपरोक्त शामिल नए विषयों पर यद्यपि प्रश्न पूछे जाते रहे हैं अतः इस सन्दर्भ में विगत वर्षों (कम से कम 3 वर्ष ) के प्रश्नपत्र का अध्ययन एवं विश्लेषण आवश्यक है. चूँकि वैकल्पिक विषयों की भाँती वर्तमान में सामंयु अध्यन के अंतर्गत पूछे जाने वाले प्रश्न काफी व्यवहारिक एवं गहरी विषय-वास्तु युक्त होते हैं अतः सिविल सेवा अभ्यर्थियों से अपेक्षा की जाती है की उपरोक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए सामान्य अध्ययन के इस खंड की तैयारी स्तरीय पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं एवं सक्षम दिशा-निर्देशन तथा हमारी वेबसाइट में दिए गए विषयवस्तुओं के विश्लेश्नाताम्क पहलुओं का अध्ययन करें.
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 12th – पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी |
2. | NIOS’ का पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी / ‘IGNOU’ पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी |
3. | PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट |
4. | आर्थिक सर्वेक्षण |
5. | पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी – इराक भरुचा / परीक्षा वाणी / भारत 2016 |
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, सुखा, भूकंप, सुनामी इत्यादि आपदा जैसी
पाठ्यक्रम यह खंड पुर्णतः नया है, परन्तु इससे सम्बंधित प्रश्न विगत वर्षों में पूछे जाते रहे हैं. उदाहरण स्वरूप आपदा के अंतर्गत बाढ़, सुखा इत्यादि से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते रहे हैं परन्तु आपदा प्रबंधन को पहली बार शामिल किया गया है. अभ्यार्थ्गियों को चाहिए की बाढ़., सुखा, भूकंप, सुनामी, इत्यादि आपदा जैसी घटनाओं के साथ-साथ आपदा प्रबंधन से सम्बंधित विषयवस्तुओं जैसे की- आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005, कृषि बीमा, सामाजिक वानिकी, एन.डी.एम.ए. की नीतियाँ इत्यादि का भी अध्ययन करें.
आतंरिक सुरक्षा के स्तर पर विगत वर्षों में नक्सलवाद, अलगाववाद, विप्लववाद, 26/11 की आतंकवादी घटना, बम कांडों की श्रृंखला इत्यादि चुनौतियाँ प्रदर्शित होती हैं ऐसी परिस्थिति में पाठ्यक्रम में इन विषयवस्तुओं से शामिल किया जाना अपरिहार्य है. आतंरिक सुरक्षा की समस्याओं को पाठ्यक्रम में परिभाषित किया गया है, उदाहरण स्वरूप…….
- विकास एवं फैलते उग्रवाद के बीच सम्बन्ध
- आतंरिक सुरक्षा के लिए चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्वों की भूमिका
- आतंरिक सुरक्षा की चुनौतियों में मीडिया
सामजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका
- साइबर सुरक्षा
- मनी लौन्डरिंग(काले धन को वैध बनाना)
- सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा की चुनौतियां
- विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएं
उपर्युक्त विषयवस्तुओं पर विस्तारित एवं गहन अध्ययन की आवश्यकता है. पुलिस सुधार आयोगों एवं अपराध न्याय व्यवस्था में सुधार आयोगों तथा द्वितीय प्रशासनिक सुधार, आयोग का 8th प्रतिवेदन उपर्युक्त विषय वस्तुओं के अध्ययन के लिए हितकर है.
वर्तमान सन्दर्भ में यह सबसे महत्वपूर्ण खंड है, जो प्रशासन एवं सरकार को नागरिकों के प्रति जवाबदेह एवं उत्तरदायी बनाने हेतु बेहतर मानकों, मूल्यों इत्यादि को प्रस्तुत करता है. नागरिको को प्रशासन एवं शासन व्यवस्था पर इतना विश्वास होना चाहिए की शासन पद्धति “लोकतांत्रिक” एवं “विधि के शासन” के मानकों के साथ संचालित हो रही है, इसे सुनिश्चित किया जा सके. यह तभी संभव है जब शासन एवं प्रशासनिक व्यवस्था उच्च नैतिकता एवं मूल्यों से निर्देशित हो एवं सरकारी व्यवहार में सत्यनिष्ठ तथा नागरिकों के कल्याण की अभिरुचि उपस्थित हो. इस प्रश्नपत्र को सुविधा के लिए निम्नांकित तीन भागों में विभाजित किया जाना चाहिए –
सही एवं गलत के प्रति व्यक्तिगत निर्णयन से नीति शास्त्र सम्बंधित होता है. यह मानकीय जीवन के लिए आवश्यक है. लक्ष्य के प्रति कार्य करने का कोई एक रास्ता नहीं होता है क्युकी अनंत लक्ष्यों में से एक के चयन का भी कोई एक मार्ग नहीं होता है. यहाँ तक की नैतिक मानकों के साथ भी हम अपने लक्ष्य को लक्ष्य प्राप्ति की अपेक्षा के साथ तय नहीं कर पाते हैं. कुछ हद तक विवेकशील तार्किक नैतिक मानकों के आधार पर हम अपने लक्ष्यों को व्यवस्थित कर सकते हैं एवं अपने महत्वपूर्ण मूल्यों की प्राप्ति हेतु कार्य कर सकते हैं. नैतिक मूल्यों को कोई व्यक्ति जीवन भर दूसरों से जुड़ने की प्रक्रिया में सीखता है स्कूली सिखा के दिनों में हम अपने शिक्षकों एवं अनन्य सहपाठियों के साथ आदरयुक्त अंतःक्रिया करना सीखते हैं. कार्यस्थल पर हम संचार कौशल, टीम वर्क , उत्तरदायित्व सीखते हैं
बेहतर नैतिक मूल्य इंसान को उत्तरदायित्वपूर्ण, कानून के शासन को स्वीकार करने वाला नागरिक बनता है. क्या सही है और क्या गलत है? इसका पारखी बनाता है
इस खंड में नीतिशास्त्र एवं मानवीय सहसंबंध, अभिरुचि, सिविल सेवा के आधारभूत मूल्य, लोकप्रशासन में नैतिकता, शासन में इमानदारी इत्यादि विषयवस्तुओं को शामिल किया गया है. इस खंड को निम्नांकित 2 उपखंडों में विभाजित किया जाना चाहिए-
- संकल्पनात्मक पक्ष
इसमें नैतिकता के मुख्य .सिद्धांत, मानवीय मूल्य, सिविल सेवा इत्यादि का अध्ययन करना है. इसमें समाज में किसी व्यक्ति का नैतिक व्यवहार प्रशासन में अधिकारियों के नैतिक व्यवहार को तय करने वाले संकल्पनात्मक आधारों का अवलोकन किया जाना चाहिए.
- अनुप्रयोग
पाठ्यक्रम में यह शामिल है की इस प्रश्न पत्र में अभ्यर्थियों की नैतिकता, सत्यनिष्ठ इत्यादि के स्तर पर पाए जाने वाले अभिवृत्ति का परिक्षण किया जाएगा. साथ हीं, केस स्टडी आधारित भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं अतः प्रशासनिक परिस्थिति जन्य प्रश्न पूछे जा सकते हैं, जहाँ नैतिकता आधारित निर्णय निर्माण एवं समस्या समाधान किया जाना अपेक्षित होता है
2.अन्तःपरस्पर सम्बन्ध कौशल
इस भाग में अभिवृत्ति एवं भावनात्मक क्षमता के अध्यायों को शामिल किया गया है. अभिवृत्ति एक दी गयी परिस्थिति में किसी व्यक्ति की मानसिक दशा या प्रवृत्ति है. जिसके आधार पर वह व्यक्ति किसी प्रघटना का मूल्यांकन करता है. जबकि संवेदनात्मक समझ के माध्यम से कोई व्यक्ति अपने और समूह के भावनात्मक संतुलन को बनाये रखता है. एक भावनात्मक क्षमता से युक्त व्यक्ति किसी एनी व्यक्ति के अहसास सोच एवं क्रिया के के अंतर को ठीक प्रकार से समझता है. “अभिवृत्ति” एवं “भावनात्मक क्षमता” दोनों किसी सिविल सेवक के सामाजिक मूल्यों ध्यान में रखते हुए संगठनात्मक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आवश्यक होते हैं.
3.भारत एवं विश्व के नैतिक विचारकों एवं दार्शनिकों के योगदान
इस खंड में नैतिकता के विकास में दार्शनिको / विचारकों के योगदान जैसे ह्युम , कांट, प्लेटो, बुद्ध, विवेकानंद, गांधी, इत्यादि का अध्ययन अपरिहार्य है. इक्कीसवीं सदी में प्रशासकों को प्रगतिशील नैतिक, प्रजातांत्रिक मूल्यों इत्यादि से युक्त होना चाहिए. इन सभी के परिक्षण हेतु नैतिक विचारकों के योगदान से विकसित होने वाले आदर्शों पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं. केस आधारित प्रश्नों को भी पूछे जाने की सम्भावना है.
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग का 4th प्रतिवेदन |
2. | आर.के. अरोड़ा – एथिकल गवर्नेंस इन बिज़नस & गवर्नमेंट |
3. | भारतीय प्रशासन – बी.एल. फड़िया |
4. | PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट |
5. | दैनिक समाचारपत्र : दैनिक जागरण / द हिन्दू / इंडियन एक्सप्रेस |
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सामान्य अध्ययन जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, किसी खास विषय का गहरा अध्ययन न होकर विभिन्न-विभिन्न विषयों का ऐसा अध्ययन है जिसके लिए किसी अनुसन्धान या विशेषज्ञता की जरुरत नहीं है संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा से सम्बंधित अपनी अधिसूचना में सामान्य अध्ययन का अर्थ स्पस्ट करते हुए लिखा है –
“सामान्य अध्ययन में ऐसे प्रश्न पूछे जायेंगे जिनके उत्तर एक सुशिक्षित व्यक्ति बिना किसी विशेषज्ञता पूर्ण अध्ययन के दे सकता है ये प्रश्न बहुत से ऐसे विषयों में उम्मीदवार की जानकारी या जागरूकता का स्तर जांचने के लिए पूछे जायेंगे जिनकी प्रासंगिकता सिविल सेवाओं में कार्य करने के दौरान होती है. प्रश्नों के माध्यम से सभी प्रासंगिक मुद्दों पर उम्मीदवार की मूल समझ परखने के साथ-साथ इस बात की भी जांच की जायेगी कि उसके पास परस्पर विरोधी सामजिक –आर्थिक लक्ष्यों तथा मांगो के विश्लेषण की कितनी योग्यता हैं ?”
सच कहा जाए तो संघ लोक सेवा आयोग द्वारा की गयी यह घोषणा सिर्फ औपचारिक महत्त्व की है वास्तविकता यह है की सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्र में कई बार प्रश्न इतने क्लिस्ट और गहरे स्टार के होते हैं की उस विषय के विशेषज्ञ भी उनका उत्त्तर नहीं दे पाते
सामान्य अध्ययन सिविल सेवा परीक्षा के पाठ्यक्रम में प्रारम्भ से शामिल रहा है किन्तु इसका महत्त्व हमेशा बराबर नहीं रहा संघ लोक आयोग ने २०११ एवं २०१५ में प्रारम्भिक परीक्षा तथा २०१३ में मुख्या परीक्षा के पाठ्यक्रम व् परीक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार किये हैं. जिसके कारण सामान्य अध्ययन की भूमिका पहले की तुलना में काफी बढ़ गयी है तथ्यों के आधार पर कहें तो जहाँ २०११ से पहले प्रारम्भिक परीक्षा के कुल ४५० अंकों में से सामान्य अधययन का योगदान १५० अंको (३३.३३%) का था, वही २०११ से लागू नविन प्रणाली में इसका योगदान बढ़कर ४०० में से २०० अंकों (५०%) का हो गया है ; जबकि २०१५ से प्रारम्भिक परीक्षा में CSAT क्वालीफाइंग हो जाने की वजह से प्रारम्भिक परीक्षा में सामान्य अध्ययन का महत्त्व बहुत जादा बढ़ गया है क्युक अब प्रारम्भिक परिखा में कट ऑफ का निर्धारण सामान्य अध्ययन (प्रथम प्रश्न पत्र ) के आधार पर ही होगा. इसी तरह , मुख्या परीक्षा(साक्षात्कार सहित) में सामान्य अध्ययन का महत्त्व २०१२ तक कुल २३०० अंकों में से सिर्फ ६०० अंकों का (अर्थात लगभग २६%) था जबकि अब कुल २०२५ अंकों में से १००० अंकों का (अर्थात लगभग ४९.४%) हो गया है
इन परिवर्तनों को इस दृष्टि से भी समझना आवश्यक है कि उम्मीदवारों की तैयारी की प्रक्रिया पर इनका क्या प्रभाव पड़ने वाला है? जहाँ तक प्रारम्भिक परीक्षा की बात है , २०१० तक इस परीक्षा में वैकल्पिक विषय की तैयारी कर लेना पर्याप्त माना जाता था और अधिकाँश उमीदवार सामान्य अध्ययन को बहुत कम महत्त्व देते थे. २०१११ में वैकल्पिक विषय को प्रारम्भिक परीक्षा से पूरी तरह हटा दिया गया और इसके स्थान पर CSAT (सिविल सेवा अभिवृत्ति परीक्षा) को शामिल किया गया इसका परिणाम यह हुआ की वैकल्पिक विषय में विशेषज्ञता के दम पर सफल होना सम्भव नहीं रहा चूँकि २०१५ की प्रारम्भिक परिख्सा से CSAT को क्वालीफाइंग कर दिया गया है, इसलिए सभी विद्यार्थियों के लिए यह जरुरी हो गया है की प्रारम्भिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए प्रथम प्रश्न पत्र यानी सामान्य अध्ययन को बहुत गहराई और समझ से तैयार करें
आशय यह है कि प्रारंभी स्तर की परीक्षा को गंभीरता से लें. उपरोक्त परिवर्तनों का आशय समझते हुए उसी के अनुरूप अपनी तैयारी को सारगर्भित एवं परिक्षान्मुख बनाएं
सामान्य अध्ययन के प्रश्न पाठ्यक्रम में शामिल विभिन्न खंडो/विषयों से किस अनुपात में पूछे जायेंगे, ये निश्चित नहीं है.आमतौर पर इतिहास, राज-व्यवस्था पारिस्थितिकी पर्यावरण,अर्थव्यवस्था और भूगोल से जादा प्रश्न पूछे जाते हैं नीचे दी गयी तालिका में आप देख सकते हैं की २०११ से २०१५ तक विभिन्न खण्डों से पूछे जाने वाले प्रश्न-
विषय | 2011 | 2012 | 2013 | 2014 | 2015 |
भारत का इतिहास और स्वाधीनता आन्दोलन | 13 | 20 | 16 | 19 | 16 |
भारतीय संविधान व् राज-व्यवस्था | 10 | 21 | 17 | 10 | 13 |
भारत का और विश्व का भूगोल | 16 | 17 | 18 | 20 | 18 |
पारिस्थतिकी, पर्यावरण और जैव-विविधता | 17 | 14 | 14 | 20 | 12 |
भारत की अर्थव्यवस्था, आर्थिक और सामजिक विकास | 22 | 14 | 18 | 11 | 16 |
सामान्य विज्ञान | 16 | 10 | 16 | 12 | 09 |
राष्ट्रीय और वैश्विक महत्त्व की समसामयिक घटनाएं/विविध | 06 | 04 | 01 | 08 | 16 |
कुल | 100 | 100 | 100 | 100 | 100 |
ü एनसीईआरटी 6th – 12th प्राचीन भारत / मध्यकालीन भारत , आधुनिक भारत का इतिहास
ü एनसीईआरटी अभ्यास प्रश्न – अध्याय वार हल करें ü PYQP (विगत वर्षों के प्रश्न) – एक लक्ष्य बनायें जिसमे एक अध्याय लक्षित करें तदुपरांत कुशलता से अध्यन करने के बाद उपरोक्त अध्याय से सम्बंधित प्रश्नों (PYQP) से हल करने का प्रयास करें ऐसा करने से आप स्वयं का मूल्यांकन कर पायेंगे. जो अपने आप में एक श्रेष्ठ विधि है तैयारी करने का. ü अध्यन के दौरान स्वयं से प्रश्न बनाने की प्रवृत्ति पैदा करें क्या? कहा? कब? क्यों? कैसे? कौन? इत्यादि और अपने प्रश्नों को विगत आये हुए प्रश्नों से तुलना करें, आप पायेंगे की आप सतही प्रश्नों तक पहुँच चुके हैं . अब आवश्यकता है निरंतर अभ्यास की और अध्ययन की जो सफलता प्राप्ति का एकमात्र शर्त है. ü प्राचीन भारत – विशेषरूप से धार्मिक आन्दोलन तक (6 ई० पूर्व )/ मौर्य/ मौर्योत्तर / गुप्त/ गुप्तोत्तर तथा केवल सांस्कृतिक पक्षों , सामम्न्त्वाद,- विजयनगर/ चोल/ चालुक्य /पल्लव ü मध्यकालीन भारत – भारत एवं इस्लामिक संस्कृति / भक्ति व् सूफी/ डेल्ही सल्तनत / मुग़ल काल के सांस्कृतिक राजनैतिक व् वैज्ञानिक पक्ष ü आधुनिक भारत – मुग़ल साम्राज्य का पतन और नए स्वायत्त राज्यों का उदय / 1857-1947/ सामाजिक एवं धार्मिक पुनर्जागरण
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ü एनसीईआरटी 6th – 12th प्राकृतिक / सामाजिक / आर्थिक भारत का भूगोल
ü एनसीईआरटी 6th – 12th प्राकृतिक / सामाजिक / आर्थिक भारत का भूगोल ü एनसीईआरटी को अध्याय वार हल करें ü भारत एवं विश्व भूगोल – महेश बर्णवाल / संविंदर सिंह / परीक्षा वाणी |
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ü PYQP (विगत वर्षों के प्रश्न) – एक लक्ष्य बनायें जिसमे एक अध्याय लक्षित करें तदुपरांत कुशलता से अध्यन करने के बाद उपरोक्त अध्याय से सम्बंधित प्रश्नों (PYQP) से हल करने का प्रयास करें ऐसा करने से आप स्वयं का मूल्यांकन कर पायेंगे. जो अपने आप में एक श्रेष्ठ विधि है तैयारी करने का. ü अध्यन के दौरान स्वयं से प्रश्न बनाने की प्रवृत्ति पैदा करें क्या? कहा? कब? क्यों? कैसे? कौन? इत्यादि और अपने प्रश्नों को विगत आये हुए प्रश्नों से तुलना करें, आप पायेंगे की आप सतही प्रश्नों तक पहुँच चुके हैं . अब आवश्यकता है निरंतर अभ्यास की और अध्ययन की जो सफलता प्राप्ति का एकमात्र शर्त है. ü भौतिक भूगोल – विशेषरूप से स्थल मंडल / जलमंडल / वायुमंडल / मानव भूगोल / आर्थिक भूगोल ü विश्व का महाद्वीपीय भूगोल – भारत सहित विश्व के अनेक देशों के भौगोलिक / जल वायुविक / वायुमंडलीय अवधारणाओं का अध्ययन एवं समझ ü भारत का भूगोल – भौगोलिक परिचय / अपवाह तंत्र / जलवायु दशाएं / मृद्दा एवं प्राकृतिक दशाएं / जल संसाधन एवं बहुद्देश्यीय परियोजनाएं / खनिज संसाधन ü कृषि एवं प्रौद्योगिकी भारत के सन्दर्भ में
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ü एनसीईआरटी – पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
ü एनसीईआरटी अभ्यास प्रश्न – अध्याय वार हल करें ü PYQP (विगत वर्षों के प्रश्न) – एक लक्ष्य बनायें जिसमे एक अध्याय लक्षित करें तदुपरांत कुशलता से अध्यन करने के बाद उपरोक्त अध्याय से सम्बंधित प्रश्नों (PYQP) से हल करने का प्रयास करें ऐसा करने से आप स्वयं का मूल्यांकन कर पायेंगे. जो अपने आप में एक श्रेष्ठ विधि है तैयारी करने का. |
ü अध्यन के दौरान स्वयं से प्रश्न बनाने की प्रवृत्ति पैदा करें क्या? कहा? कब? क्यों? कैसे? कौन? इत्यादि और अपने प्रश्नों को विगत आये हुए प्रश्नों से तुलना करें, आप पायेंगे की आप सतही प्रश्नों तक पहुँच चुके हैं . अब आवश्यकता है निरंतर अभ्यास की और अध्ययन की जो सफलता प्राप्ति का एकमात्र शर्त है.
ü ‘NIOS’ का पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी / ‘IGNOU’ पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी ü पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी – इराक भरुचा / परीक्षा वाणी / भारत 2016 ü आर्थिक सेर्वेंक्षण में पर्यावरण से जुड़े अध्याय / पर्यावरण मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट
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ü एनसीईआरटी 6th – 11th भारतीय राज-व्यवस्था
ü एनसीईआरटी अभ्यास प्रश्न – अध्याय वार हल करें ü PYQP (विगत वर्षों के प्रश्न) – एक लक्ष्य बनायें जिसमे एक अध्याय लक्षित करें तदुपरांत कुशलता से अध्यन करने के बाद उपरोक्त अध्याय से सम्बंधित प्रश्नों (PYQP) से हल करने का प्रयास करें ऐसा करने से आप स्वयं का मूल्यांकन कर पायेंगे. जो अपने आप में एक श्रेष्ठ विधि है तैयारी करने का. ü अध्यन के दौरान स्वयं से प्रश्न बनाने की प्रवृत्ति पैदा करें क्या? कहाँ? कब? क्यों? कैसे? कौन? इत्यादि और अपने प्रश्नों को विगत आये हुए प्रश्नों से तुलना करें, आप पायेंगे की आप सतही प्रश्नों तक पहुँच चुके हैं. अब आवश्यकता है निरंतर अभ्यास की और अध्ययन की जो सफलता प्राप्ति का एकमात्र शर्त है. ü भारतीय राज-व्यवस्था – एम. लक्ष्मीकांत / बृज किशोर शर्मा / डी.डी. बसु / बेअर एक्ट / भारत 2016
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ü एनसीईआरटी 9th & 11th भारतीय अर्थव्यवस्था / जनगणना 2011 / सामजिक-आर्थिक जनगणना रिपोर्ट
ü एनसीईआरटी अभ्यास प्रश्न – अध्याय वार हल करें ü PYQP (विगत वर्षों के प्रश्न) – एक लक्ष्य बनायें जिसमे एक अध्याय लक्षित करें तदुपरांत कुशलता से अध्यन करने के बाद उपरोक्त अध्याय से सम्बंधित प्रश्नों (PYQP) से हल करने का प्रयास करें ऐसा करने से आप स्वयं का मूल्यांकन कर पायेंगे. जो अपने आप में एक श्रेष्ठ विधि है तैयारी करने का. ü अध्यन के दौरान स्वयं से प्रश्न बनाने की प्रवृत्ति पैदा करें क्या? कहाँ? कब? क्यों? कैसे? कौन? इत्यादि और अपने प्रश्नों को विगत आये हुए प्रश्नों से तुलना करें, आप पायेंगे की आप सतही प्रश्नों तक पहुँच चुके हैं. अब आवश्यकता है निरंतर अभ्यास की और अध्ययन की जो सफलता प्राप्ति का एकमात्र शर्त है. ü भारतीय अर्थव्यवस्था– आर्थिक सेर्वेंक्षण + बजट (2015 & 2016) / एस.एन. लाल / रमेश सिंह / भारत 2016
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रणनीति के कुछ अनछुये पहलु |
“प्रिय अभ्यर्थियों ये तो सर्वविदित है की हम सभी बड़े सपने लेकर संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी करने डेल्ही और इलहाबाद और विभिन्न जिलो में जातें हैं , परन्तु सही मार्ग दर्शन की कमी , परीक्षान्मुख विषयवस्तुओं की अनुपलब्धता तथा महंगे कोचिंग फीस के कारण हताश और भटक जाते हैं . लेकिन आपको ज्ञात ही होगा की संघ लोक सेवा आयोग ने मुख्य परीक्षा के अपने नए पाठ्यक्रम में ‘नीतिशास्त्र,सत्यनिष्ठा एवं अभिरुचि’ विषय को सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-4 में जोड़ा है, कारण की देश को ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोकसेवक मिल सके जो देश के नागरिकों के हित में सदैव तत्पर रहे. ऐसी ही ईमानदारी और सत्यनिष्ठा आप सभी को अपने तैयारी के दौरान दिखानी होगी. क्योंकि मात्र किताबी ज्ञान से आप कुछ हांसिल नहीं कर पायेंगे जब तक आप सुचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (इन्टरनेट) का सकरात्मक उपयोग नहीं करते. अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी का चयन दर अपेक्षाकृत अधिक होने का कारण यही है की वे सभी इन्टरनेट का उपयोग ज्ञान अर्जन हेतु करते हैं.
का निर्माण कर रहे हैं जहाँ आप हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी और अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी भी अपने ज्ञान के आधार को विस्तृत कर पायेंगे. कहते हैं न की “ तैयारी इतनी ख़ामोशी से करो की सफलता शोर मचा दे “ दोस्तों बहुत बड़े सपने देखना अच्छी बात है परन्तु हर बड़ा लक्ष्य प्रतिबद्धता मांगता है निरंतर अभ्यास मांगता है ϒ अभ्यास की महत्ता। ϒ एक लड़का बहुत ही मन्द बुद्धि था। उसे पढ़ना-लिखना कुछ न आता था। बहुत दिन पाठशाला में रहते हुए भी उसे कुछ न आया… तो लड़कों ने उसकी मूर्खता के अनुरूप उसे.. ‘बरधराज’ अर्थात् ‘बैलों का राजा’ कहना शुरू कर दिया। घर बाहर सब जगह उसका अपमान ही होता।एक दिन वह लड़का बहुत दुखी होकर पाठशाला से चल दिया और इधर-उधर मारा-मारा फिरने लगा। वह एक कुँए के पास पहुँचा और देखा कि किनारे पर रखे हुये जगत के पत्थर पर रस्सी खिंचने की रगड़ से निशान बन गये है। लड़के को सूझा कि- “जब इतना कठोर पत्थर रस्सी की लगातार रगड़ से घिस सकता है तो क्या मेरी मोटी बुद्धि लगातार परिश्रम करने से न घिसेगी।” वह फिर पाठशाला लौट आया और पूरी तत्परता और उत्साह के साथ पढ़ना आरम्भ कर दिया, उसे सफलता मिली। ‘व्याकरण शास्त्र’ का वह उद्भट विद्वान् हुआ। “लघु सिद्धान्त कौमुदी” नामक ग्रन्थ की उसने रचना की, जो संस्कृत व्याकरण का अद्भुत ग्रंथ है। उसके नाम में थोड़ा सुधार किया गया- ‘बरधराज’ की जगह फिर उसे “वरदराज” कहा जाने लगा। इसी पर एक दोहा बना….. “करत-करत अभ्यास से जडमति होत सुजान। अर्थात:- जिस तरह कुवें की जगत के पत्थर पर बारबार रस्सी के आने-जाने की रगड से निशान बन जाते हैं, उसी प्रकार लगातार अभ्यास से अल्पबुद्धि भी बुद्धिमान बन सकता है। दोस्तों सपनों को पूरा करें खूब परिश्रम करें लगन से जुट जाएँ सफलता आपके कदम चूमेगी …………………………..शुभेच्छा के साथ !! |
इतिहास की तैयारी अगर उचित रंन्नीति के साथ नहीं की जाए तो वह उबाऊ एवं बोझिल हो जाता है अध्ययन की सुविधा हेतु इतिहास एवं संस्कृति खंड के अंतर्गत नए पाठ्यक्रम को निम्न पांच खंडो में बांटा जा सकता है
- भारतीय संस्कृति
इस खंड के तहत प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप , साहित्य एवं वास्तुकला के मुख्य समूह अन्तर्निहित होंगे किसी राष्ट्र के विरासत का निर्माण साहित्य ऐतिहासिक साक्ष्य, स्थापत्य कला, इत्यादि के चल एवं अचल घटकों के सम्मामेलन से होता है इस खंड को सामान्यतः तीन उपखंडों में विभाजित किया जा सकता है
- दृश्य कला
- स्थापत्य कला (नागर शैली, द्रविण शैली. वेसर शैली, इंडो-इस्लामिक शैली, विक्टोरियन शैली इत्यादि)
- शिल्पकला (गांधार शैली, मथुरा शैली, अमरावती शैली इत्यादि)
- चित्र कला (प्राक इतिहास, अजन्ता एवं बाघ चित्रकला,मिनिएचर चित्रकला, मुग़ल चित्रकला, राजपूत शैली, पहाड़ी शैली, पटना कलम शैली, मधुबनी पेंटिंग्स, मंजुसा पेंटिंग्स इत्यादि)
- संगीत, नृत्य, थियेटर, सर्कस, इत्यादि
- भाषा, हस्तशिल्प, धर्म, इत्यादि
- आधुनी भारतीय इतिहास (18वीं सदी के मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास)
इस खंड के तहत ब्रिटिश कंपनी का भारत में विस्तार, भारत में ब्रिटिश आर्थिक प्रशासनिक नीति एवं उसका प्रभाव, ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति, भारतीय प्रतिक्रिया यथा- जनजातीय विद्रोह, नागरिक विद्रोह, १८५७ का विद्रोह, राष्ट्रवाद का उदभव एवं विकास, स्वातंत्र्योत्तर भारत में आयोजन प्रक्रिया एवं विकास, कम्मू एवं कश्मीर मुद्दा, सम्पूर्ण क्रान्ति, भूदान आन्दोलन, हरित क्रान्ति, नाक्सालवाद का उदभव ,बोडो आन्दोलन, आपातकाल की परिस्थितियां तथा विभिन्न सामजिक आन्दोलन इत्यादि
- स्वतंत्रता संघर्ष:- इस खंड के तहत १८८५ से लेकर १९४७ तक के भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का विस्तार से अध्ययन अनिवार्य है. कांग्रेस की स्थापना से लेकर गांधीवादी आन्दोलन तक की पूरी घटना इस खंड में समाहित है. लेकिन हालिया बदलाव एवं ट्रेंड को देखते हुए इस उपखंड के तहत संवेधानिक विकास, गवर्नर जनरल एवं वायसराय की भूमिका, स्वतंत्रता आन्दोलन में श्रमिक वर्ग एवं पूंजीपतियों की भूमिका, क्षेत्रीय नेताओं की भूमिका, महिला एवं महिला संगठनों इत्यादि की भूमिका का अध्ययन करना है
- स्वतंत्रता के बाद देश के अन्दर समेकन एवं पुनर्गठन
यह उपखंड सामान्य अध्ययन के पाठ्यक्रम में नया समाहित किया गया है. यज खंड स्वतंत्रता के उपरान्त भारतीय विकास के राजनैतिक अर्थशास्त्र को समग्रता में प्रस्तुत करता है. स्वतंत्रता के उपरान्त औपनिवेशिक निम्न आर्थिक विकास, सकल गरीबी, सामाजिक असमानता इत्यादि समस्याएं हमारे समक्ष थी, साथ ही भारतवासियों एवं नेताओं के द्वारा राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को आत्मविश्वास के साथ प्रारम्भ किया गया अतः इस खंड के तहत निम्न महत्वपूर्ण मुद्दों का अध्ययन करेंगे. भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन, राज्यों का एकीकरण, भूमि सुधार एवं जमीदारी उन्मूलन, भारत में आयोजन, भारत में सहकारिता आन्दोलन इत्यादि.
अध्ययन सन्दर्भ | |
1.
2.
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बिपिन चंद्रा – आजादी के बाद भारत
एनसीआरटी – स्वतंत्रता के पश्चात भारत
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- विश्व इतिहास पाठ्यक्रम में, नया समाहित यह खंड विद्यार्थियों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण है यदि इस पाठ्यक्रम का गहनता से विश्लेषण किया जाए तो इस खंड को निम्न अध्यायों में बांटा जा सकता
18वीं सदी का इतिहास | औद्योगिक क्रान्ति, अमेरिकी क्रान्ति, फ्रांसीसी क्रान्ति, |
19वीं सदी का इतिहास | नेपोलियन, जेर्मनी-इटली का एकीकरण |
20वीं सदी का इतिहास | रुसी क्रान्ति, प्रथम विश्वयुद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध कारण एवं परिणाम, शीत युद्ध- कारण, विकास, साम्यवाद का पतन |
नोट :- उपरोक्त बॉक्स में दर्शाए गए विषयों के अतिरिक्त उपनिवेशवाद, उपनिवेशवाद की समाप्ति, साम्यवाद, पूंजीवाद, समाजवाद इत्यादि का अध्ययन अतिआवश्यक है
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
अद्भुत भारत खंड -१ एवं खंड -२ (ए.एल बाशम/एस. एस. रिजवी) | |
भारतीय कला का परिचय, एनसीईआरटी क्लास –11th | |
एनसीईआरटी कक्षा 11th & 12th | |
आधुनिक भारत का इतिहास – बिपिन चंद्रा, सुमित सरकार, बी.एल. | |
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इस भाग में शामिल विषयवास्तु वर्तमान सामाजिक बोध के विकास की अवधारणा क देखते हुए महत्वपूर्ण है सामाजिक बोध के विकास हेतु व्यक्ति, समूह एवं समुदाय के बीच के गतिशील संबंधों को ध्यान में रखा जाना चाहिए. सामजिक बोध से युक्त व्यक्ति मानवाधिकार एवं मानवीय मूल्यों से सम्बंधित विषयों में दक्ष होता है . इतना ही नहीं सामजिक मुद्दों की अधिक जानकारी एक व्यक्ति को समाज के हित में कार्य करने तथा उत्तरदायित्व पूर्ण व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है
इस भाग के अंतर्गत दिए गए विषयों पर पकड़ बनाने के लिए सामाजिक संकल्पनाओं की समझ को विकसित करना जरुरी है. उद्धरण स्वरुप यदि “गरीबी” के विषय पर प्रश्न पूछा गया है तो, सामान्य से बेहतर उत्तर लेखन हेतु यह आवश्यक है की कुछ सैद्धांतिक पक्षों को शामिल किया जाए, साथ ही व्यवहारिक केस अध्ययन को भी शामिल किया जाए
विध्यार्थियों को समाज में हो रहे निरंतरता एवं परिवर्तन पर नजर रखनी चाहिए. यथा, बहुत से आधुनिक आव्रात्तियों के आगमन के बावजूद भी भारत में जातिव्यवस्था आज भी प्रभावी है. सयुंक्त परिवार के लगातार टूटने के उपरान्त भी अधिकतम भारतीय ऐसी पारिवारिक व्यवस्था से आज भी प्रभावित हैं
अतः यदि संकल्पनाओं की बेहतर समझ बन जाए तो आप सामाजिक विषयवस्तुओं को ठीक प्रकार से जान सकते हैं एवं नए पाठ्यक्रम के प्रश्नों का उत्तर कार्यकुशलता-पूर्वक कर पायेंगे
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 9th & 10th |
2. | भारतीय समाज की समस्याएं – श्री राम आहूजा |
3. | इग्नू के नोट्स |
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- विश्व के भौतिक भूगोल की मुख्य विशेषताएं
यह भाग सम्पूर्ण ग्लोब पर भौगोलिक संवृत्ति और प्रक्रिया के आधारभूत समझ की प्रतियोगियों से अपेक्षा रखता है इसमें चार क्षेत्रों के अध्ययन को प्रमुखता से महत्त्व दिया जाता है जैसे –भूमि, जल, वायु, और जैव भूगोल, साथ हीं इसे पर्यावरण की भी आधारभूत समझ का विकास होता है. इसमें निम्नलिखित भागों पर चर्चा की जाती है.
- भू- आकृति विज्ञान :
स्थालाकृतियाँ, स्थालाक्रितियों के विकास को प्रभावित करने वाले कारक, अंतर्जात और बहिर्जात बल तथा इनके परिणाम, पृथ्वी की उत्पत्ति तथा विकास, पृथ्वी के आतंरिक भाग की भौतिक दशा इत्यादि
- जलवायु विज्ञान :
मौसम तथा जलवायु विश्व के ताप और दाब कटिबंध तथा इनका ग्लोब पर प्रभाव, पृथ्वी का ऊष्मा बजट, वायुमंडलीय परिसंचरण, वायुमंडलीय स्थिरता एवं अस्थिरता, भूमंडलीय एवं स्थानीय पवनें, मानसून तथा जेट स्ट्रीम, वायु संहति तथा वाताग्र जनन,उष्ण उपोष्ण चक्रवात, वर्षा के प्रकार तथा वितरण, वैश्विक जलवायु परिवर्तन और इसमें मानव की भूमिका तथा उत्तर्दावित्व
- समुद्र विज्ञान :
अटलांटिक, हिन्द तथा प्रशांत महासागर की नितल स्थालाकृतियाँ, समुद्र का तापमान तथा लवणता, समुद्री निक्षेप, धरा, प्रवाह,तथा ज्वार भाटा जलीय संसाधन :- जैविक ऊर्जा
- जैव भूगोल :
मृदा तथा प्रकार, विशेषता, मृदा निम्नीकरण की समस्या एवं संरक्षण, पौधों तथा जंतुओं का विश्व वितरण तथा इसको प्रभावित करने वाले कारक वन अप्रोपन की समस्या तथा संरक्षण, बृहद जीन पूर्व केंद्र
- तृतीयक विज्ञान :
तृतीयक स्थालाक्रितियो के उदभव का कारण तथा विश्व वितरण भारत में तृतीयक स्थालाक्रितीय का जैव विविधता दृष्टिकोण से महत्त्व है
- विश्व के मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण
इस भाग में समूर्ण विश्व में आर्थिक दिशाओं के क्षेत्रीय वितरण का अध्ययन करना है
इसमें संसाधनों का वितरण तथ्यात्मक रूप से देखने के साथ ही उन कारकों का भी अध्ययन करना है जो इनके वितरण तथा विकास को प्रभावित करते हैं
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 11th –भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत |
2. | एनसीईआरटी कक्षा 11th & 12th मानव भूगोल के सिद्धांत |
3. | भारत एवं विश्व भूगोल – डी.आर. खुल्लर एवं महेश बर्णवाल |
4. | PYQP ( previous year question paper ) |
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संविधान, राजनितिक व्यवस्था एवं शासन व्यवस्था तथा सामाजिक न्याय जैसे विषय एक दुसरे से अंतर्संबंधित हैं , इनमें अंतर करने हेतु विद्यार्थियों को इन विषयों के संकल्पना, दार्शनिक एवं व्यावहारिक मुद्दों पर बेहतर समझ बनाने की आवश्यकता है
‘संविधान’ आधारभूत सिद्धांतों एवं कानूनों, नियमों एवं विनियमों का एक समूह है जिसके माध्यम से राज्य या संगठन संचालित होता है इसमें सरकार के तीनो अंगों के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का वर्णनं होता है. राजनितिक व्यवस्था से तात्पर्य सरकार की एक व्यवस्था से है जबकि शासन व्यवस्था से तात्पर्य सरकार के संसाधनों के प्रबंधन से या सरकारी कार्यनीतियों के तरीकों से है. विद्यार्थियों को सर्वप्रथम संविधान का गहन अध्ययन करना चाहिए, सरकार के प्रकार एवं शासन के तौर तरीकों को भी दृष्टिगत रखते हुए, नविन पाठ्यक्रम में प्रशासनिक व्यवस्था, गैर सरकारी संगठन, स्वैक्षिक संगठन और शासन व्यवस्था पर इनके प्रभाव जैसे मुद्दों का विस्तार से अध्ययन करना चाहिए.
परपरागत रूप से इस भाग में संविधान, न्यायिक- प्रक्रियाओं आदि का अध्ययन किया जाता था जो पर्याप्त नहीं है
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
एनसीईआरटी कक्षा 11th & 12th | |
सुभाष कश्यप – 1. हमारा संविधान 2. हमारी संसद 3. हमारे न्यायपालिका | |
भारतीय राज-व्यवस्था – 1. लक्ष्मी कान्त 2. डी.डी. बासु | |
PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट | |
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सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय. विकास प्रक्रिया तथा विकास उद्ध्योग-गैर सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों विभिन्न समूहों और संघों दानकर्ताओं लोकोपकारी संस्थाओं, संस्थागत एवं अन्य पक्षों की भूमिका से प्रश्न पूछे जायेंगे साथ ही सामजिक न्याय से जुडी केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसँख्या के वंचित एवं अति सम्वेदनशील वर्गों के हितार्थ बनाए जाने वाले कल्याणकारी योजनाओं तथा इन योजनाओं से जुड़े कार्य-स्पादन से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. स्ववास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से सम्बंधित सामजिक क्षेत्र / सेवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित प्रश्न . गरीबी और भुख से सम्बंधित विषयों तथा शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस-अनुप्रयोग नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय.
- पाठ्यक्रम में अन्तर्निहित विषयवस्तु
भारत एवं इसके पडोसी राष्ट्र देशों में विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप के राष्ट्र जैसे –नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश श्रीलंका के साथ परस्पर द्विपक्षीय संबंधो एवं बहुपक्षीय संबंधो में तारतम्यता जिसमे सामजिक सांस्कृतिक राजनैतिक के साथ साथ सामरिक एवं आर्थिक संबंधो की महत्वता हो. इसके साथ हीं हेतु द.पू. एशियाई राष्ट्रों, मंगोलिया, कजाकिस्तान, ईरान इत्यादि राष्ट्रों के साथ संबंधो का भी अध्ययन करना हितकर होगा
द्विपक्षीय संबंधों में राष्ट्रीय हितों तथा मौलिक रूप से आर्थिक हितो को ध्यान में रखते हुए बनने वाले अंतराष्ट्रीय भागीदारों के समूहों में भारत की भूमिका का अध्ययन किया जाना चाहिए. भारतीय डायस्पोरा की भूमिका पुराने पाठ्यक्रम में समाहित रहा है परन्तु नए पाठ्यक्रम में इसे और विस्तारित किया गया है क्योंकि नए पाठ्यक्रम में “विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों की राजनीति एवं लोक्नितियाँ” को शामिल किया गया है. भारतीय डायस्पोरा की भूमिका विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों की राजनीति में लोक्नितियों के स्तर क्या क्या हैं? इसका भी अध्ययन किया जाना चाहिए.
अंतराष्ट्रीय संस्थाओं, संगठनों से सम्बंधित पाठ्यक्रम अधिक महत्वपूर्ण होने के साथ साथ विस्तारित हैं. इस खंड की तैयारी हेतु समसामयिक घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए अंतराष्ट्रीय संगठनों की संरचना, भूमिका का अध्ययन किया जाना चाहिए.
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 12th– भारत में लोकतंत्र : मुद्दे एवं चुनौतियाँ |
2. | भारत 2016 : भारत एवं विश्व अध्ययन |
3. | मासिक पत्रिकाएं – वर्ल्ड फोकस , इंडिया टुडे , फ्रंट लाइन |
4. | भारतीय विदेश मंत्रालय : वार्षिक प्रतिवेदन (www.mea.gov.in) |
5. | PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट |
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इस उपखंड में भारतीय अर्थव्यवस्था के अंतर्गत नियोजन के मुद्दे, संसाधनों के दोहन तथा आर्थिक संवृद्धि एवं विकास को शामिल किया गया है परन्तु विद्यार्थियों के लिए यह हितकर होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी परंपरागत विषयवस्तुओं यथा- कृषि, उद्योग, राष्ट्रीय आय इत्यादि का अध्ययन करने के साथ साथ उपर्युक्त विषयों को समसामयिक घटनाओं के साथ तालमेल रखते हुए अध्ययन किया जाना चाहिए.
नविन पाठ्यक्रम में अर्थव्यवस्था पर उदारीकरण के प्रभाव को रखा गया है, जाहिर है उदारीकरण का प्रभाव आर्थिक घटकों यथा कृषि, उधोग, बिमा, बैंकिंग इत्यादि पर वर्ष 1991 से हीं पड़ने शुरू हो चुके थे. उदारीकरण की नीतियों का अध्ययन किया जाना अभ्यर्थी से अपेक्षित है. उपर्युक्त दोनों बिन्दुओं के अध्ययन से भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारभूत समझ विकसित होती है तथा एक सामान्य समझ को विकसित किया जा सकता है
“सरकारी बजट” को नविन पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है, पिछले वर्षों में बजटीय कार्यक्रमों से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते रहे हैं. परन्तु अब बजट की व्यापक संकल्पना इसके प्रकार एवं प्रकृति इत्यादि का अध्ययन भी अपेक्षित है क्युक बजट के द्वारा विकास प्रक्रिया पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी होना एक लोकसेवक से अपेक्षित है. उदहारण स्वरूप बजट के द्वारा आर्थिक नीतियों में कुछ प्रयोग किये जाते रहे हैं जिसका सामाजिक आर्थिक विकास पर प्रभाव पड़ता है जैसे वर्ष 2005-2006 वित्तीय वर्ष से आउटकम बजट एवं जेंडर बजट की शुरुआत हुई जिसने आर्थिक मोर्चे पर विभिन्न बदलाव किये.
कृषि एवं उद्योग से सम्बंधित विषय वस्तुओं पर अत्यधिक बल दिया गया है यथा फसल प्रतिरूप, सिचाई के प्रकार एवं चुनौतियां, फसल प्रकार, भूमि सुधार, फ़ार्म सब्सिडी, खाद्य-प्रसंस्करण इत्यादि
भारत एक विकासशील राष्ट्र है जहाँ विकास गतिकी का संचालन तीव्रता पूर्वक हो रहा है. सामाजिक अवसंरचनाओ यथा शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण इत्यादि के साथ-साथ मौलिक अवसंरचनाएं यथा –सड़क, बिजली, पत्तन, रेलवे, वायुपत्तन इत्यादि के स्तर पर भी भूमि का निष्पादन किया जा रहा है. अतः इन तमाम पहलुओं पर भारतीय स्थिति, चुनौतियाँ, सुधार के लिए बनने वाले आयोगों इत्यादि का अध्ययन अभ्यर्थियों से अपेक्क्षित है
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 11th– भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास |
2. | एनसीईआरटी – भारत : लोग एवं अर्थव्यवस्था |
3. | PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट |
4. | आर्थिक सर्वेक्षण |
5. | आधार पुस्तकें – एस. एन. लाल / रमेश सिंह / मिश्र एवं पुरी |
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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी खंड सामान्य अध्ययन का महत्वपूर्ण क्षेत्र है इस खंड के अंतर्गत 100 से ज्यादा अंकों के प्रश्न विगत वर्षों में हुए परीक्षा में पूछे गए हैं. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी खंड में शामिल नए विषयों से सम्बंधित प्रश्न पूर्ववर्ती वर्षों में संघ लोक सेवा आयोग एवं एनी राज्य लोक सेवा आयोगों द्वारा पूछे जाते रहे हैं. यद्यपि इनका उल्लेख पुराने पाठ्यक्रम में नहीं किया गया था नए पाठ्यक्रम में इन विषयों का स्पस्ट उल्लेख किया गया है. यथा; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी :विकास एवं अनुप्रयोग रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव.प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण एवं नव-प्रौद्योगिकी का विकास. विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय उपलब्धियां.
उपर्युक्त नए शामिल विषयों के अतिरिक्त पुराने पाठ्यक्रम में उल्लेखित विषय वस्तुते निम्न हैं: सुचना प्रौद्योगिकी , अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनोटेक्नोलाजी, जैव्प्रध्योगिकी एवं बौद्धिक संपदा अधिकार से सम्बंधित विषयों के सम्बन्ध में जागरूकता.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास एवं अनुप्रयोग के तहत रक्षा, ऊर्जा, नाभिकीय तकनीकी, समुद्र तकनीक इत्यादि विषयों का स्पष्ट उल्लेख पाठ्यक्रम में नहीं है, जबकि इन विषयों से प्रश्न पूछे जा सकते हैं. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी खंड की तैयारी के अंतर्गत उल्लेखित विषयों के घटनाक्रम, अवधारणात्मक समझ एवं वर्तमान भारतीय सन्दर्भों में इसका महत्त्व इत्यादि शामिल है. साथ ही विगत वर्षो में आये प्रश्नों का विश्लेषण एवं अध्ययन भी आवश्यक है. वर्तमान विस्तारित पाठ्यक्रम के सन्दर्भ में कहना गलत न होगा की यह सिविल सेवा अभ्यर्थियों को संतुलित एवं समेकित बनाने में यह दिशा निर्देशक की भूमिका निभाएगा.
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 6th – 10th |
2. | ओल्ड एनसीईआरटी – विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी |
3. | PYQP / विज्ञान प्रगति / साइंस रिपोर्टर / इंडिया इयर बुक |
4. | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट |
5. | साइंस रिपोर्टर / भारत 2016 |
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संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रस्तावित नए पाठ्यक्रम में पर्यावरण से सम्बंधित प्रमुख विषयों को शामिल किया गया है जैसे – संरक्षण, पर्यावरण प्रदुषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन. उपरोक्त नए विषय मात्र एक रुपरेखा प्रस्तुत करते हैं, जो की स्वयं अपने आप में कई उप-विषयों को समाहित किये हुए है. जैसे – संरक्षण के सन्दर्भ में जैव-विविधता संरक्षण, वन्य जीवन संरक्षण, जल संसाधन संरक्षण इत्यादि. इसी प्रकार पर्यावरण प्रदुषण और क्षरण के अंतर्गत मुलभुत अवधारणा, कारण एवं प्रभाव. इनसे निपटने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय प्रयास, नीतियाँ एवं विधियाँ इत्यादि. पर्यावरण प्रभाव आंकलन के सन्दर्भ में मुलभुत अवधारणा, उद्देश्य, भारत में पर्यावरण प्रभाव का आंकलन एवं तरीकों इत्यादि का अध्ययन भी शामिल है.
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उपरोक्त शामिल नए विषयों पर यद्यपि प्रश्न पूछे जाते रहे हैं अतः इस सन्दर्भ में विगत वर्षों (कम से कम 3 वर्ष ) के प्रश्नपत्र का अध्ययन एवं विश्लेषण आवश्यक है. चूँकि वैकल्पिक विषयों की भाँती वर्तमान में सामंयु अध्यन के अंतर्गत पूछे जाने वाले प्रश्न काफी व्यवहारिक एवं गहरी विषय-वास्तु युक्त होते हैं अतः सिविल सेवा अभ्यर्थियों से अपेक्षा की जाती है की उपरोक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए सामान्य अध्ययन के इस खंड की तैयारी स्तरीय पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं एवं सक्षम दिशा-निर्देशन तथा हमारी वेबसाइट में दिए गए विषयवस्तुओं के विश्लेश्नाताम्क पहलुओं का अध्ययन करें.
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | एनसीईआरटी कक्षा 12th – पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी |
2. | NIOS’ का पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी / ‘IGNOU’ पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी |
3. | PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट |
4. | आर्थिक सर्वेक्षण |
5. | पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी – इराक भरुचा / परीक्षा वाणी / भारत 2016 |
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, सुखा, भूकंप, सुनामी इत्यादि आपदा जैसी
पाठ्यक्रम यह खंड पुर्णतः नया है, परन्तु इससे सम्बंधित प्रश्न विगत वर्षों में पूछे जाते रहे हैं. उदाहरण स्वरूप आपदा के अंतर्गत बाढ़, सुखा इत्यादि से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते रहे हैं परन्तु आपदा प्रबंधन को पहली बार शामिल किया गया है. अभ्यार्थ्गियों को चाहिए की बाढ़., सुखा, भूकंप, सुनामी, इत्यादि आपदा जैसी घटनाओं के साथ-साथ आपदा प्रबंधन से सम्बंधित विषयवस्तुओं जैसे की- आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005, कृषि बीमा, सामाजिक वानिकी, एन.डी.एम.ए. की नीतियाँ इत्यादि का भी अध्ययन करें.
आतंरिक सुरक्षा के स्तर पर विगत वर्षों में नक्सलवाद, अलगाववाद, विप्लववाद, 26/11 की आतंकवादी घटना, बम कांडों की श्रृंखला इत्यादि चुनौतियाँ प्रदर्शित होती हैं ऐसी परिस्थिति में पाठ्यक्रम में इन विषयवस्तुओं से शामिल किया जाना अपरिहार्य है. आतंरिक सुरक्षा की समस्याओं को पाठ्यक्रम में परिभाषित किया गया है, उदाहरण स्वरूप…….
- विकास एवं फैलते उग्रवाद के बीच सम्बन्ध
- आतंरिक सुरक्षा के लिए चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्वों की भूमिका
- आतंरिक सुरक्षा की चुनौतियों में मीडिया
सामजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका
- साइबर सुरक्षा
- मनी लौन्डरिंग(काले धन को वैध बनाना)
- सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा की चुनौतियां
- विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएं
उपर्युक्त विषयवस्तुओं पर विस्तारित एवं गहन अध्ययन की आवश्यकता है. पुलिस सुधार आयोगों एवं अपराध न्याय व्यवस्था में सुधार आयोगों तथा द्वितीय प्रशासनिक सुधार, आयोग का 8th प्रतिवेदन उपर्युक्त विषय वस्तुओं के अध्ययन के लिए हितकर है.
वर्तमान सन्दर्भ में यह सबसे महत्वपूर्ण खंड है, जो प्रशासन एवं सरकार को नागरिकों के प्रति जवाबदेह एवं उत्तरदायी बनाने हेतु बेहतर मानकों, मूल्यों इत्यादि को प्रस्तुत करता है. नागरिको को प्रशासन एवं शासन व्यवस्था पर इतना विश्वास होना चाहिए की शासन पद्धति “लोकतांत्रिक” एवं “विधि के शासन” के मानकों के साथ संचालित हो रही है, इसे सुनिश्चित किया जा सके. यह तभी संभव है जब शासन एवं प्रशासनिक व्यवस्था उच्च नैतिकता एवं मूल्यों से निर्देशित हो एवं सरकारी व्यवहार में सत्यनिष्ठ तथा नागरिकों के कल्याण की अभिरुचि उपस्थित हो. इस प्रश्नपत्र को सुविधा के लिए निम्नांकित तीन भागों में विभाजित किया जाना चाहिए –
सही एवं गलत के प्रति व्यक्तिगत निर्णयन से नीति शास्त्र सम्बंधित होता है. यह मानकीय जीवन के लिए आवश्यक है. लक्ष्य के प्रति कार्य करने का कोई एक रास्ता नहीं होता है क्युकी अनंत लक्ष्यों में से एक के चयन का भी कोई एक मार्ग नहीं होता है. यहाँ तक की नैतिक मानकों के साथ भी हम अपने लक्ष्य को लक्ष्य प्राप्ति की अपेक्षा के साथ तय नहीं कर पाते हैं. कुछ हद तक विवेकशील तार्किक नैतिक मानकों के आधार पर हम अपने लक्ष्यों को व्यवस्थित कर सकते हैं एवं अपने महत्वपूर्ण मूल्यों की प्राप्ति हेतु कार्य कर सकते हैं. नैतिक मूल्यों को कोई व्यक्ति जीवन भर दूसरों से जुड़ने की प्रक्रिया में सीखता है स्कूली सिखा के दिनों में हम अपने शिक्षकों एवं अनन्य सहपाठियों के साथ आदरयुक्त अंतःक्रिया करना सीखते हैं. कार्यस्थल पर हम संचार कौशल, टीम वर्क , उत्तरदायित्व सीखते हैं
बेहतर नैतिक मूल्य इंसान को उत्तरदायित्वपूर्ण, कानून के शासन को स्वीकार करने वाला नागरिक बनता है. क्या सही है और क्या गलत है? इसका पारखी बनाता है
इस खंड में नीतिशास्त्र एवं मानवीय सहसंबंध, अभिरुचि, सिविल सेवा के आधारभूत मूल्य, लोकप्रशासन में नैतिकता, शासन में इमानदारी इत्यादि विषयवस्तुओं को शामिल किया गया है. इस खंड को निम्नांकित 2 उपखंडों में विभाजित किया जाना चाहिए-
- संकल्पनात्मक पक्ष
इसमें नैतिकता के मुख्य .सिद्धांत, मानवीय मूल्य, सिविल सेवा इत्यादि का अध्ययन करना है. इसमें समाज में किसी व्यक्ति का नैतिक व्यवहार प्रशासन में अधिकारियों के नैतिक व्यवहार को तय करने वाले संकल्पनात्मक आधारों का अवलोकन किया जाना चाहिए.
- अनुप्रयोग
पाठ्यक्रम में यह शामिल है की इस प्रश्न पत्र में अभ्यर्थियों की नैतिकता, सत्यनिष्ठ इत्यादि के स्तर पर पाए जाने वाले अभिवृत्ति का परिक्षण किया जाएगा. साथ हीं, केस स्टडी आधारित भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं अतः प्रशासनिक परिस्थिति जन्य प्रश्न पूछे जा सकते हैं, जहाँ नैतिकता आधारित निर्णय निर्माण एवं समस्या समाधान किया जाना अपेक्षित होता है
2.अन्तःपरस्पर सम्बन्ध कौशल
इस भाग में अभिवृत्ति एवं भावनात्मक क्षमता के अध्यायों को शामिल किया गया है. अभिवृत्ति एक दी गयी परिस्थिति में किसी व्यक्ति की मानसिक दशा या प्रवृत्ति है. जिसके आधार पर वह व्यक्ति किसी प्रघटना का मूल्यांकन करता है. जबकि संवेदनात्मक समझ के माध्यम से कोई व्यक्ति अपने और समूह के भावनात्मक संतुलन को बनाये रखता है. एक भावनात्मक क्षमता से युक्त व्यक्ति किसी एनी व्यक्ति के अहसास सोच एवं क्रिया के के अंतर को ठीक प्रकार से समझता है. “अभिवृत्ति” एवं “भावनात्मक क्षमता” दोनों किसी सिविल सेवक के सामाजिक मूल्यों ध्यान में रखते हुए संगठनात्मक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आवश्यक होते हैं.
3.भारत एवं विश्व के नैतिक विचारकों एवं दार्शनिकों के योगदान
इस खंड में नैतिकता के विकास में दार्शनिको / विचारकों के योगदान जैसे ह्युम , कांट, प्लेटो, बुद्ध, विवेकानंद, गांधी, इत्यादि का अध्ययन अपरिहार्य है. इक्कीसवीं सदी में प्रशासकों को प्रगतिशील नैतिक, प्रजातांत्रिक मूल्यों इत्यादि से युक्त होना चाहिए. इन सभी के परिक्षण हेतु नैतिक विचारकों के योगदान से विकसित होने वाले आदर्शों पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं. केस आधारित प्रश्नों को भी पूछे जाने की सम्भावना है.
क्रम | अध्ययन सन्दर्भ |
1. | द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग का 4th प्रतिवेदन |
2. | आर.के. अरोड़ा – एथिकल गवर्नेंस इन बिज़नस & गवर्नमेंट |
3. | भारतीय प्रशासन – बी.एल. फड़िया |
4. | PYQP / योजना / कुरुक्षेत्र / ऑडियो डिबेट |
5. | दैनिक समाचारपत्र : दैनिक जागरण / द हिन्दू / इंडियन एक्सप्रेस |
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