Revolt of 1857
1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीयविद्रोह के नाम से भी जाना जाता है ब्रितानी शासन के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह था। यह विद्रोह दो साल तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला। इस विद्रोह की शुरुआत छावनीं क्षेत्रों में छोटी झड्पों तथा आगजनी से हुई परन्तु जनवरी माह तक इसने एक बडा रुप ले लिय़ा। इस विद्रोह के अन्त में ईस्ट इंडिया कम्पनी का भारत में शासन खत्म हो गया और ब्रितानी सरकार का प्रत्यक्ष शासन प्रारम्भ हो गया जो कि अगले 90 सालों तक चला। |
भारत में ब्रितानी विस्तार का इतिहास |
ईस्ट ईण्डिया कंपनी ने राबर्ट क्लाईव के नेतृत्व में सन 1757 में प्लासी का युद्ध जीता। युद्ध के बाद हुई संधि में अन्ग्रेजों को बंगाल में कर मुक्त व्यापार का अधिकार मिल गया। सन 1764 में बक्सर का युद्ध जीतने के बाद अन्ग्रेजों का बंगाल पर पूरी तरह से अधिकार हो गया। इन दो युद्धों में हुई जीत ने अन्ग्रेजों की ताकत को बहुत बडा दिया, और उनकी सैन्य क्षमता की को परम्परागत भारतीय सैन्य क्षमता से श्रेष्ठ सिद्ध कर दिया। कंपनी ने इसके बाद सारे भारत पर अपना प्रभाव फ़ैलाना शुरू कर दिया। |
सन 1845 में ईस्ट ईण्डिया कंपनी ने सिन्ध क्षेत्र पर रक्तरंजित लडाई के बाद अधिकार कर लिया। सन 1839 में महाराजा रंजीत सिंह की मृत्यु के बाद कमजोर हुए पंजाब पर अन्ग्रेजों ने अपना हाथ बडाया और सन 1848 में दूसरा अन्ग्रेज – सिख युद्ध हुआ। सन 1849 में कंपनी का पंजाब पर भी अधिकार हो गया। सन 1853 में आखरी मराठा पेशवा बाजी राव के दत्तक पुत्र नाना साहब की पदवी छीनली गयी और उनका सालाना खर्चा बंद कर दिया गया। |
सन 1854 में बरार और सन 1856 में अवध को कंपनी के राज्य में मिला लिया गया। |
विद्रोह के कारण |
सन 1857 के विद्रोह के विभिन्न राजनैतिक,आर्थिक,धार्मिक,सैनिक तथा सामाजिक कारण बताये जाते हैं। |
वैचारिक मतभेद |
कई ईतिहासकारों का मानना है कि उस समय के जनमानस में यह धारणा थी कि अन्ग्रेज उन्हें जबर्दस्ती या धोखे से ईसाई बनाना चाहते थे। यह पूरी तरह से गलत भी नहीं था, कुछ कंपनी अधिकारी धर्म परिवर्तन के कार्य में जुटे थे। हालांकि कंपनी ने धर्म परिवर्तन को मंजूरी कभी नहीं दी। कंपनी इस बात से अवगत थी कि धर्म, पारम्परिक भारतीय समाज में विद्रोह का एक कारण बन सकता है। |
डाक्ट्रिन औफ़ लैप्स की नीति के अन्तर्गत अनेक राज्य जैसे झाँसी,अवध,सतारा,नागपुर और संबलपुर को अन्ग्रेजी राज्य में मिला लिया गया और इनके उत्तराधिकारी राजा से अन्ग्रेजी राज्य से पेंशन पाने वाले कर्मचारी बन गये। शाही घराने, जमींदार और सेनाओं ने अपनेआप को बेरोजगार और अधिकारहीन पाया । ये लोग अन्ग्रेजों के हाथों अपनी शरमिन्दगी और हार का बदला लेने के लिये तैयार थे। लौर्ड डलहौजी के शासन के आठ सालों में दस लाख वर्गमील क्षेत्र को कंपनी के कब्जे मे ले लिया गया। इसके अतिरिक्त ईस्ट ईण्डिया कंपनी की बंगाल सेना में बहुत से सिपाही अवध से भर्ती होते थे, वे अवध में होने वाली घटनाओं से अछूते नही रह सके। नागपुर के शाही घराने के आभूषणों की कलकत्ता में बोली लगायी गयी इस घटना को शाही परिवार के प्रति अनादर के रुप में देखा गया। |
भारतीय कंपनी के सख्त शासन से भी नाराज थे जो कि तेजी से फ़ैल रहा था और पश्चिमी सभ्य्ता का प्रसार कर रहा था। अन्ग्रेजों ने हिन्दू और मुसल्मानों के उस समय माने जाने वाले बहुत से रिवाजो को गैरकानूनी घोषित कर दिया जो कि अन्ग्रेजों मे असमाजिक माने जाते थे। इसमें सती प्रथा पर रोक लगाना शामिल था। यहां ध्यान देने योग्य बात यह् है कि सिखों ने यह बहुत पहले ही बंद कर दिया था और बंगाल के प्रसिद्ध समाज सुधारक राजा राममोहन राय इस प्रथा को बंद करने के पक्ष में प्रचार कर् रहे थे। ईन कानूनों ने समाज के कुछ पक्षों मुख्य्त् बंगाल मे क्रोध उत्पन्न कर दिया। अन्ग्रेजों ने बाल विवाह प्रथा को समाप्त किया तथा कन्या भ्रूण हत्या पर भी रोक लगायी। अन्ग्रेजों द्वारा ठगी का खात्मा भी किया गया परन्तु यह सन्देह अभी भी बना हुआ है कि ठग एक धार्मिक समुदाय था या सिर्फ़ साधारण डकैतों का समुदाय। |
ब्रितानी न्याय व्यवस्था भारतीयों के लिये अन्यायपूर्ण मानी जाती थी। सन 1853 में ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री लौर्ड अब्रेडीन ने प्रशासनिक सेवा को भारतीयों के लिये खोल दिया परन्तु कुछ प्रबुद्ध भारतीयों के हिसाब से यह सुधार काफ़ी नही था। कंपनी के अधिकारियों को भारतीयों के खिलाफ़् अदालत में अनेक अपीलों का अधिकार प्राप्त था। कंपनी भारतीयों पर भारी कर भी लगाती थी जिसे न चुकाने की स्थिति में उनकी संपत्ति अधिग्रहित कर् ली जाती थी। |
कंपनी के आधुनिकीकरण के प्रयासों को पारम्परिक भारतीय समाज में सन्देह की दृष्टि से देखा गया। लोगो ने माना कि रेल्वे जो बाम्बे से सर्व्प्रथम चला एक दानव है और लोगो पर विपत्ती लायेगा। |
परन्तु बहुत से इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इन सुधारों को बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है क्योंकी कंपनी के पास इन सुधारों को लागू करने के साधन नही थे और कलकत्ता से दूर उनका प्रभाव नगन्य था | |
आर्थिक कारण |
1857 के विद्रोह का एक प्रमुख कारण कंपनी द्वारा भारतीयों का आर्थिक शोषण भी था। कंपनी की नीतियों ने भारत की पारम्परिक अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से खत्म कर दिया था। इन नीतियों की वजह से बहुत से किसान,कारीगर,मजदूर और कलाकार कंगाल हो गये। इनके साथ साथ जमींदारों और बडे किसानों की हालत भी बदतर हो गयी। सन 1813 में कंपनी ने एक तरफ़ा मुक्त व्यापार की नीति अपना ली इसके अन्तर्गत ब्रितानी व्यापारियों को आयात करने की पूरी छूट मिल गयी, परम्परागत तकनीक से बनी हुई भारतीय वस्तुएं इसके सामने टिक नहीं सकी और भारतीय शहरी हस्तशिल्प व्यापार को अकल्प्नीय नुकसान हुआ। |
रेल सेवा के आने के साथ ग्रामीण क्षेत्र के लघु उद्यम भी नष्ट हो गये। रेल सेवा ने ब्रितानी व्यापारियों को दूर दराज के गावों तक पहुंच दे दी। सबसे ज्यादा नुकसान कपडा उद्योग (कपास और रेशम ) को हुआ। इसके साथ लोहा व्यापार, बर्तन,कांच,कागज,धातु,बन्दूक,जहाज और रंगरेजी के उद्योग को भी बहुत नुकसान हुआ। 18 वीं और 19 वीं शताब्दी में ब्रिटेन और यूरोप में आयात कर और अनेक रोकों के चलते भारतीय निर्यात खत्म हो गया। पारम्परिक उद्योगों के नष्ट होने और साथ साथ आधुनिक उद्योगों का विकास न होने की वजह से यह स्थिति और भी विषम हो गयी। साधारण जनता के पास खेती के अलावा कोई और साधन नही बचा। |
खेती करने वाले किसानो की हालत भी खराब थी। ब्रितानी शासन के प्रारम्भ में किसानो को जमीदारों की दया पर् छोड दिया गया जिन्होने लगान को बहुत बडा दिया और बेगार तथा अन्य तरीकों से किसानो का शोषण करना प्रारम्भ कर दिया। कंपनी ने खेती के सुधार पर बहुत कम खर्च किया और अधिकतर लगान कंपनी के खर्चों को पूरा करने मे प्रयोग होता था। फ़सल के खराब होने की दशा में किसानो को साहूकार अधिक ब्याज पर कर्जा देते थे और अनपढ़ किसानो कई तरीकों से ठगते थे। ब्रितानी कानून व्यवस्था के अन्तर्गत भूमि हस्तांतरण वैध हो जाने के कारण किसानो को अपनी जमीन से भी हाथ धोना पडता था। |
इन समस्याओं के कारण समाज के हर वर्ग में असन्तोष व्याप्त था। |
राजनैतिक कारण |
सन 1848 और 1856 के बीच लार्ड डलहोजी ने डाक्ट्रिन औफ़ लैप्स के कानून के अन्तर्गत अनेक राज्यों पर कब्जा कर लिया। इस सिद्धांत अनुसार कोई राज्य, क्षेत्र या ब्रितानी प्रभाव का क्षेत्र कंपनी के अधीन हो जायेगा यदि क्षेत्र का राजा निसन्तान मर जाता है या शासक कंपनी की नजरों में अयोग्य साबित होता है। इस सिद्धांत पर कार्य करते हुए लार्ड डलहोजी के व्यपगत सिद्धांत के द्वारा निम्नलिखित राज्यों को ब्रिटिश शासन में मिला लिया गया ।
कंपनी द्वारा तोडी गय़ी सन्धियों और वादों के कारण कंपनी की राजनैतिक विश्वसनियता पर भी प्रश्नचिन्ह लग चुका था। सन 1849 में लार्ड डलहोजी की घोषणा के अनुसार बहादुर शाह के उत्तराधिकारी को ऐतिहासिक लाल किला छोडना पडेगा और शहर के बाहर जाना होगा और सन 1856 में लार्ड कैन्निग की घोषणा कि बहादुर शाह के उत्तराधिकारी राजा नहीं कहलायेंगे ने मुगलों को कंपनी के विद्रोह में खडा कर दिया। |
सिपाहियों की आशंका |
सिपाही मूलत: कंपनी की बंगाल सेना मे काम करने वाले भारतीय मूल के सैनिक थे। बाम्बे, मद्रास और बंगाल प्रेसीडेन्सी की अपनी अलग सेना और सेनाप्रमुख होता था। इस सेना में ब्रितानी सेना से ज्यादा सिपाही थे। सन 1857 में इस सेना मे 257,000 सिपाही थे। बाम्बे और मद्रास प्रेसीडेन्सी की सेना मे अलग अलग क्षेत्रो के लोग होने की वजह से ये सेनाएं विभिन्नता से पूर्ण थी और इनमे किसी एक क्षेत्र के लोगो का प्रभुत्व नही था। परन्तु बंगाल प्रेसीडेन्सी की सेना मे भर्ती होने वाले सैनिक मुख्यत: अवध और गन्गा के मैदानी इलाको के भूमिहार राजपूत और ब्राह्मिन थे।
कंपनी के प्रारम्भिक वर्षों में बंगाल सेना में जातिगत विशेषाधिकारों और रीतिरिवाजों को महत्व दिया जाता था परन्तु सन 1840 के बाद कलकत्ता में आधुनिकता पसन्द सरकार आने के बाद सिपाहियों में अपनी जाति खोने की आशंका व्याप्त हो गयी । सेना में सिपाहियों को जाति और धर्म से सम्बन्धित चिन्ह पहनने से मना कर दिया गया। सन 1856 मे एक आदेश के अन्तर्गत सभी नये भर्ती सिपाहियों को विदेश मे कुछ समय के लिये काम करना अनिवार्य कर दिया गया। सिपाही धीरे-धीरे सेना के जीवन के विभिन्न पहलुओं से असन्तुष्ट हो चुके थे। सेना का वेतन कम था और अवध और पंजाब जीतने के बाद सिपाहियों का भत्ता भी खत्म कर् दिया गया था। एनफ़ील्ड बंदूक के बारे में फ़ैली अफवाहों ने सिपाहियों की आशन्का को और बडा दिया कि कंपनी उनकी धर्म और जाति परिवर्तन करना चाहती है। |
एनफ़ील्ड बंदूक |
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सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस मे लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। यह हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों दोनो की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ़ था। ब्रितानी अफ़सरों ने इसे अफ़वाह बताया और सुझाव दिया कि सिपाही नये कारतूस बनाये जिसमे बकरे या मधुमक्क्खी की चर्बी प्रयोग की जाये। इस सुझाव ने सिपाहियों के बीच फ़ैली इस अफ़वाह को और पुख्ता कर दिया। दूसरा सुझाव यह दिया गया कि सिपाही कारतूस को दांतों से काटने की बजाय हाथों से खोलें। परंतु सिपाहियों ने इसे ये कहते हुए अस्विकार कर दिया कि वे कभी भी नयी कवायद को भूल सकते हैं और दांतों से कारतूस को काट सकते हैं। |
तत्कालीन ब्रितानी सेना प्रमुख (भारत) जार्ज एनसन ने अपने अफ़सरों की सलाह को नकारते हुए इस कवायद और नयी बंदूक से उत्पन्न हुई समस्या को सुलझाने से इन्कार कर दिया। |
अफ़वाहें |
ऐक और अफ़वाह जो कि उस समय फ़ैली हुई थी, कंपनी का राज्य सन 1757 मे प्लासी का युद्ध से प्रारम्भ हुआ था और सन 1857 में 100 साल बाद खत्म हो जायेगा। चपातियां और कमल के फ़ूल भारत के अनेक भागों में वितरित होने लगे। ये आने वाले विद्रोह की निशानी थी। |
युद्ध का प्रारम्भ |
विद्रोह प्रारम्भ होने के कई महीनो पहले से तनाव का वातावरण बन गया था और कई विद्रोहजनक घटनायें घटीं। 24 जनवरी 1857 को कलकत्ता के निकट आगजनी की कयी घटनायें हुई। 26 फ़रवरी 1857 को 19 वीं बंगाल नेटिव इनफ़ैन्ट्री ने नये कारतूसों को प्रयोग करने से मना कर दिया। रेजीमेण्ट् के अफ़सरों ने तोपखाने और घुडसवार दस्ते के साथ इसका विरोध किया पर बाद में सिपाहियों की मांग मान ली। |
मंगल पाण्डेय |
मंगल पाण्डेय 34 वीं बंगाल नेटिव इनफ़ैन्ट्री मे एक सिपाही थे। मार्च 29, 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय ने रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे जख्मी कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के मजहबी पागलपन मे था। जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर जमादार ने ईन्कार कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथीयों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उसने अपनी बंदूक से अपनी जान लेने की कोशिश करी। परन्तु वह इस प्रयास मे सिर्फ़ घायल हुआ। अप्रैल 6, 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी। |
जमादार ईश्वरी प्रसाद को भी मौत की सजा दी गयी और उसे भी 22 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी। सारी रेजीमेण्ट को खत्म कर दिया गया और सिपाहियों को निकाल दिया गया। सिपाही शेख पलटु को तरक्की दे कर बंगाल सेना में जमादार बना दिया गया । |
अन्य रेजीमेण्ट के सिपाहियों को यह सजा बहुत ही कठोर लगी। कई ईतिहासकारों के मुताबिक रेजीमेण्ट को खत्म करने और सिपाहियों को बाहर निकालने ने विद्रोह के प्रारम्भ होने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, असंतुष्ट सिपाही बदला लेने की इच्छा के साथ अवध लौटे और विद्रोह ने उने यह मौका दे दिया। |
अप्रैल के महीने में आगरा , इलाहाबाद और अंबाला शहर मे भी आगजनी की घटनायें हुयीं। |
विद्रोह के कारण
- आधुनिक भारतीय इतिहास मेँ 1857 का विद्रोह विशिष्ट स्थान रखता है, क्योंकि इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ माना जाता है।
- 1857 के विद्रोह को जन्म देने वाले कारणों में राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक सभी कारण जिम्मेदार हैं।
- ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन जनता मेँ असंतोष का बहुत बड़ा कारण था पेचीदा नयाय प्रणाली तथा प्रशासन मेँ भारतीयोँ की भागीदारी न के बराबर होना विद्रोह के प्रमुख कारणोँ मेँ से एक था।
- राजनीतिक कारणोँ मेँ डलहौजी की व्यपगत नीति और वेलेजली की सहायक संधि का विद्रोह को जन्म देने मेँ महत्वपूर्ण भूमिका रही।
- विद्रोह के लिए आर्थिक कारण भी जिम्मेदार रहे। ब्रिटिश भू राजस्व नीति के कारण बड़ी संख्या मेँ किसान व जमींदार अपनी भूमि के अधिकार से वंचित हो गए।
- 1850 मेँ धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम द्वारा ईसाई धर्म ग्रहण करने वाले लोगोँ को अपने पैतृक संपत्ति का हकदार माना गया। साथ ही अति उन्हें नौकरियों में पदोन्नति, शिक्षा संस्थानोँ मेँ प्रवेश की सुविधा प्रदान की गई। धार्मिक कार्योँ की पृष्ठभूमि मेँ इसे देखा जा सकता है।
- 1857 के विद्रोह के लिए जिम्मेदार सामाजिक कारणों मेँ अंग्रेजी प्रशासन के सुधारवादी उत्साह के अंतर्गत पारंपरिक भारतीय प्रणाली और संस्कृति संकटग्रस्त स्थिति मेँ पहुंच गई, जिसका रुढ़िवादी भारतीयों ने विरोध किया।
- 1857 के विद्रोह के अनेक सैनिक कारण भी थे, जिंहोने इसकी पृष्ठभूमि का निर्माण किया।
- कैनिंग ने 1857 में सैनिकों के लिए ब्राउन वैस के स्थान पर एनफील्ड रायफलों का प्रयोग शुरु करवाया जिसमें कारतूस को लगाने से पूर्व दांतो से खींचना पडता था, चूंकि कारतूस मेँ गाय और सूअर दोनों की चर्बी लगी थी इसलिए हिंदू और मुसलमान दोनों भड़क उठे।
- 1857 का विद्रोह अचानक नहीँ फूट पड़ा था, यह पूर्वनियोजित विद्रोह था।
- कुछ इतिहासकार मानते हैँ कि नाना साहब ने निकटस्थ अजीमुल्ला खाँ तथा सतारा के अपदस्थ राजा के निकटवर्ती रणोली बापू ने लंदन मेँ विद्रोह की योजना बनाई।
- अजीमुल्ला ने बिठुर में नाना साहब के साथ मिलकर विद्रोह की योजना को अंतिम रुप देते हुए 31 मई, 1857 की क्रांति के सूत्रपात का दिन निश्चित किया था।
- क्रांति के प्रतीक के रुप मेँ कमल का फूल और रोटी को चुना गया। कमल के फूल को उन सभी सैन्य टुकड़ियों तक पहुंचाया गया, जिन्हें विद्रोह मेँ शामिल होना था। रोटी को एक गांव का चौकीदार दूसरे गांव तक पहुंचा था।
- चर्बी लगे कारतूस के प्रयोग को 1857 की विद्रोह का तत्कालिक कारण माना जाता है।
- चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग से चारोँ तरफ से असंतोष ने विद्रोह के लिए निर्धारित तिथि से पूर्व ही विस्फोट को जन्म दे दिया।
घटनाक्रम
- चर्बीयुक्त कारतूस के प्रयोग के विरुद्ध सर्वप्रथम कलकत्ता के समीप बैरकपुर कंपनी मेँ तैनात 19वीं व 34वीं नेटिव इंफेंट्री के सैनिकोँ ने बगावत की।
- 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी मेँ तैनात 34वीं इन्फैन्ट्री के एक सैनिक मंगल पांडे ने चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग से इनकार करते हुए अपने अधिकारी लेफ्टिनेंट बाग और लेफ्टिनेंट जनरल ह्युसन की हत्या कर दी।
- 8 अप्रैल, 1857 को सैनिक अदालत के निर्णय के बाद मंगल पाण्डे को फांसी की सजा दे दी गई।
- 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी के सैनिकों ने विद्रोह की शुरुआत कर दिल्ली की और कूच किया।
- 12 मई, 1857 को दिल्ली पर कब्जा करके सैनिकोँ ने निर्वासित मुग़ल सम्राट बहादुर शाह जफर को भारत का बादशाह घोषित कर दिया।
विद्रोह का प्रसार
- दिल्ली पर कब्जा करने के बाद शीघ्र ही है विद्रोह मध्य एवं उत्तरी भारत मेँ फैल गया।
- 4 जून को लखनऊ मेँ बेगम हजरत हजामत महल के नेतृत्व मेँ विद्रोह का आरंभ हुआ जिसमें हेनरी लॉटेंस की हत्या कर दी गई।
- 5 जून को नाना साहब के नेतृत्व मेँ कानपुर पर अधिकार कर लिया गया नाना साहब को पेशवा घोषित किया गया।
- झांसी मेँ विद्रोह का नेतृत्व रानी लक्ष्मी बाई ने किया।
- झांसी के पतन के बाद लक्ष्मी बाई ने ग्वालियर मेँ तात्या टोपे के साथ मिलकर विद्रोह का नेतृत्व किया। अंततः लक्ष्मीबाई अंग्रेजोँ जनरल ह्यूरोज से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई।
- रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु पर जनरल ह्यूरोज ने कहा था, “भारतीय क्रांतिकारियोँ मेँ यहाँ सोयी हुई औरत मर्द है।“
- तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग था। वे ग्वालियर के पतन के बाद नेपाल चले गए जहाँ एक जमींदार मानसिंह के विश्वासघात के कारण पकडे गए और 18 अप्रैल 1859 को उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया।
- बिहार के जगरीपुर मेँ वहाँ के जमींदार कुंवर सिंह 1857 के विद्रोह का झण्डा बुलंद किया।
- मौलवी अहमदुल्लाह ने फैजाबाद में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व प्रदान किया।
- अंग्रेजो ने अहमदुल्ला की गतिविधियो से चिंतित होकर उसे पकड़ने के लिए 50 हजार रुपए का इनाम घोषित किया था।
- खान बहादुर खान ने रुहेलखंड मेँ 1857 के विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया था, जिसे पकड़कर फांसी दे दी गई।
- राज कुमार सुरेंद्र शाही और उज्जवल शाही ने उड़ीसा के संबलपुर मेँ विद्रोह का नेतृत्व किया।
- मनीराम दत्त ने असम मेँ विद्रोह का नेतृत्व किया।
- बंगाल, पंजाब और दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों ने विद्रोह मेँ भाग नहीँ लिया।
- अंग्रेजो ने एक लंबे तथा भयानक युद्ध के बाद सितंबर, 1857 मेँ दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया।
विद्रोह के परिणाम
- विद्रोह के बाद भारत मेँ कंपनी शासन का अंत कर दिया गया तथा भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया गया।
- भारत के गवर्नर जनरल को अब वायसराय कहा जाने लगा।
- भारत सचिव के साथ 15 सदस्यीय भारतीय परिषद की स्थापना की गई।
- 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा सेना के पुनर्गठन के लिए स्थापति पील आयोग की रिपोर्ट पर सेना मेँ भारतीय सैनिकोँ की तुलना मेँ यूरोपियो का अनुपात बढ़ा दिया गया।
- भारतीय रजवाड़ों के प्रति विजय और विलय की नीति का परित्याग कर सरकार ने राजाओं को गोद लेने की अनुमति प्रदान की।
विद्रोह का दमन और अंग्रेज अधिकारी एवं विद्रोही नेता | ||
विद्रोह का स्थान | अधिकारी | विद्रोही नेता |
इलाहाबाद | कर्नल नील | लियाकत अली |
झाँसी | कैप्टन ह्यूरोज | रानी लक्ष्मीबाई |
पटना | आऊट्रम / बिन्सेट आयर | कुंवर सिंह |
दिल्ली | कैम्पबेल | खान बहादुर |
कानपुर | कैम्पबेल | नाना साहब |
बरेली | कैम्पबेल | खान बहादुर |
जगदीशपुर | जनरल आयर टेलर | कुंवर सिंह |
लखनऊ | कैम्पबेल | बेगम हजरत महल / बिजरिस कद्र |
वाराणसी | कर्नल नील | लियाकत अली |
जनरल जॉन निकोल्सन
|
20 सितम्बर,1857 को दिल्ली पर अधिकार किया( जल्द ही
लड़ाई में मिले घाव के कारण निकोल्सन की मृत्यु हो गयी|)
|
मेजर हडसन
|
दिल्ली में बहादुरशाह के पुत्रों व पोतों की हत्या कर दी|
|
सर ह्यूग व्हीलर
|
26 जून 1857 तक नाना साहिब की सेना का सामना किया
|27 तारीख को ब्रिटिश सेना ने इलाहाबाद से सुरक्षित
निकलने का आश्वासन प्राप्त करने के बाद आत्मसमर्पण कर
दिया|
|
जनरल नील
|
जून 1857 में बनारस और इलाहाबाद को पुनः अपने कब्जे
में लिया |नाना साहिब की सेना द्वारा अंग्रेजों की हत्या के
प्रतिशोधस्वरुप उसने कानपुर में भारतीयों की हत्या
की|विद्रोहियों से संघर्ष के दौरान लखनऊ में उसकी मृत्यु हो
गयी|
|
सर कॉलिन काम्पबेल
|
इन्होनें 6 दिसंबर 1857 को अंतिम रूप से कानपुर पर
कब्ज़ा किया | 21 मार्च 1858 को अंतिम रूप से लखनऊ
पर कब्ज़ा कर लिया |5 मई 1858 को बरेली को पुनः प्राप्त
किया|
|
हेनरी लॉरेंस
|
अवध के मुख्य प्रशासक, जिनकी हत्या विद्रोहियों द्वारा 2
जुलाई 1857 को लखनऊ रेजीडेंसी पर कब्जे के दौरान कर
दी गयी थी |
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मेजर जनरल हैवलॉक
|
17 जुलाई 1857 को नाना साहिब की सेना को हराया
|दिसंबर 1857 को लखनऊ में इनकी मृत्यु हो गयी|
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विलियम टेलर और आयर
|
अगस्त 1857 में आरा में विद्रोह का दमन किया|
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ह्यूग रोज
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झाँसी में विद्रोह का दमन किया और 20 जून 1858 को
ग्वालियर पर पुनः कब्ज़ा किया |उन्होंने संपूर्ण मध्य भारत
और बुंदेलखंड को पुनः ब्रिटिश शासन के अधीन ला दिया|
|
कर्नल ओंसेल
|
बनारस पर कब्ज़ा किया|
|
स्मरणीय तथ्य
- बहादुर शाह दिल्ली मेँ प्रतीकात्मक नेता था। वास्तविक नेतृत्व सैनिकों की एक परिषद के हाथों मेँ था, जिसका प्रधान बख्त खां था।
- 1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग था।
- यह विद्रोह सत्ता पर अधिकार के बाद लागू किए जाने वाले किसी सामाजिक विकल्प से रहित था।
- 1857 के विद्रोह मेँ पंजाब, राजपूताना, हैदराबाद और मद्रास के शासकों ने बिल्कुल हिस्सा नहीँ लिया।
- विद्रोह की असफलता के कई कारण थे, जिसमेँ प्रमुख कारण था एकता, संगठन और साधनों की कमी।
- बंगाल के जमींदारों ने विद्रोहियोँ को कुचलने के लिए अंग्रेजो की मदद की थी।
- बी. डी. सावरकर ने अपनी पुस्तक भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के माध्यम से इस धारणा को जन्म दिया कि, 1857 का विद्रोह एक सुनियोजित राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम था।
- वास्तव मेँ 1857 का विद्रोह मात्र सैनिक विद्रोह नहीँ था, बल्कि इसमेँ समाज का प्रत्येक वर्ग शामिल था। विद्रोह मेँ लगभग डेढ़ लाख लोगोँ की जानेँ गई।
1857 की क्रांति के संबंध में प्रमुख उक्तियां
- ‘वर्ष सत्तावन का विद्रोह सिपाही विद्रोह मात्र था’ – झेड राबर्ट्स
- ‘1857 की घटना सिर्फ गाय की चर्बी से उत्पन्न सैनिक उत्पात थी’ -सर जॉन लॉरेंस
- ‘1857 के विद्रो को या तो सिपाही विद्रोह या अनधिकृत राजाओं तथा जमींदारों का अनियोजित प्रयत्न अथवा सीमित किसान-युद्ध कहा जा सकता है’ -एडवर्ड टॉम्पसन तथा जी.टी. गैरेट
- ‘1857 का विद्रोह स्वतंत्र, संघर्ष नहीं धार्मिक युद्ध था’ – विलियम हॉवर्ड रसेल
- ‘1857 के विद्रोह में राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था और यह सैनिक विद्रोह से बढ़कर और कुछ भी नहीं था -आर.सी. मजुमदार
- ‘भारतीय जनता का संगठित संग्राम था’ – जवाहरलाल नेहरू
- ‘1857 का विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह नहीं था, अपितु यह भारतवासियों का अंग्रेजों के विरुद्ध धार्मिक, सैनिक शक्तियों के साथ राष्ट्रीय अरिमता की रक्षा के लिए लड़ा गया युद्ध था’ -जस्टिस मेकाकी
- ‘1857 का विद्रोह स्वधर्म और राजस्व के लिए लड़ा गया राष्ट्रीय संघर्ष था’ -विनायक दामोदर सावरकर
- ‘1857 का विद्रोह मुसलमानों के षड्यंत्र का परिणाम था’ -सर जेम्स आउट्रम
- “1857 ई. की क्रांति भारत की पवित्र भूमि से विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने का प्रयास थी’ – डॉ. सैय्यद आतहर अब्बास रिज़वी
- “1857 का विद्रोह विदेशी शासन से राष्ट्र को मुदत कराने का देशभक्तिपूर्ण प्रयास था” -विपिन चन्द्र
- “1857 का विद्रोह सचेत संयोग से उपजा राष्ट्रीय विद्रोह था” -बेंजामिन डिजरैली
- “1857 का विद्रोह सैनिक विद्रोह न होकर नागरिक विद्रोह था” -जान ब्रूस नार्टन
- ‘1857 के विद्रोह का आरंभिक स्वरूप सैनिक विद्रोह का ही था, किन्तु बाद में इसने राजनीतिक स्वरूप ग्रहण कर लिया’ -एस.एस. सेन
विद्रोह के प्रमुख केंद्र एवं नेतृत्वकर्ता |
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कानपुर में अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब सभी की पसंद थे। उन्हें कम्पनी ने उपाधि एवं महल दोनों से वंचित कर दिया था तथा पूना से निष्कासित कर कानपुर में रहने पर बाध्य कर दिया था। विद्रोह के पश्चात नाना साहब ने स्वयं को पेशवा घोषित कर दिया तथा स्वयं को भारत के सम्राट बहादुरशाह के गवर्नर के रूप में मान्यता दी। 27 जून 1857 को सर ह्यू व्हीलर ने कानपुर में आत्मसमर्पण कर दिया। |
लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व बेगम हजरत महल ने किया। यहां 4 जून 1857 को प्रारंभ हुये विद्रोह में सभी की सहानुभूति बेगम के साथ थी। बेगम हजरत महल के पुत्र की स्थापना की गयी। इसमें हिन्दुओं एवं मुसलमानों की समान भागेदारी थी। यहां के प्रश्रय लिया। लेकिन विद्रोहियों ने रेजीडेंसी पर आक्रमण किया तथा हेनरी लारेंस को मोत के घाट उतार दिया।तत्पश्चात ब्रिगेडियर इंग्लिश ने विद्रोहियों का बहादुरीपूर्वक प्रतिरोध किया। बाद में सर जेम्स आउट्रम तथा सर हेनरी हैवलॉक ने लखनऊ को जीतने का यथासंभव प्रयास किया पर वे भी सफल नहीं हो सके। अंततः नये ब्रिटिश कमांडर इन-चीफ सर कोलिन कैम्पबेल ने गोरखा रेजीमेंट की सहायता से मार्च 1858 में नगर पर अधिकार प्राप्त करने में सफलता पायी। मार्च 1858 तक लखनऊ पूरी तरह अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया फिर भी कुछ स्थानों पर छिटपुट विद्रोह की घटनायें होती रहीं। |
रोहिलखण्ड के पूर्व शासक के उत्तराधिकारी खान बहादुर ने स्वयं को बरेली का सम्राट घोषित कर दिया। कम्पनी द्वारा निर्धारित की गई पेंशन से असंतुष्ट होकर अपने 40 हजार सैनिकों की सहायता से खान बहादुर ने लम्बे समय तक विद्रोह का झंडा बुलंद रखा। बिहार में एक छोटी रियासत जगदीशपुर के जमींदार कुंवर सिंह ने यहां विद्रोह का नेतृत्व किया। इस 70 वर्षीय बहादुर जमीदार ने दानापुर से आरा पहुंचने पर सैनिकों को सुदृढ़ नेतृत्व प्रदान किया तथा ब्रिटिश शासन को कड़ी चुनौती दी। |
फैजाबाद के मौलवी अहमदउल्ला 1857 के विद्रोह के एक अन्य प्रमुख नेतृत्वकर्ता थे। वे मूलतः मद्रास के निवासी थे। बाद में वे फैजाबाद आ गये थे तथा 1857 विद्रोह के अन्तर्गत जब अवध में विद्रोह हुआ तब मौलवी अहमदउल्ला ने विद्रोहियों को एक सक्षम नेतृत्व प्रदान किया। |
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1857 का विद्रोह लगभग 1 वर्ष से अधिक समय तक विभिन्न स्थानों पर चला तथा जुलाई 1858 तक पूर्णतया शांत हो गया। |
विद्रोह-उपनिवेशवादी नीतियों एवं शोषण का परिणाम |
आर्थिक कारण- नयी राजस्व व्यवस्था के तहत भारी करारोपण, बेदखली, भारतीय उत्पादों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण प्रशुल्क नीति, परंपरागत हस्तशिल्प उद्योग का विनाश, आधुनिक औद्योगिक व्यवस्यता को प्रोत्साहन न देना, जिसने कृषक, जमींदार एवं शिल्पकारों को दरिद्र बना दिया।राजनीतिक कारण- लार्ड डलहौजी की साम्राज्यवादी नीतियां, ब्रिटिश शासन का विदेशीपन, दोषपूर्ण न्याय व्यवस्था एवं प्रशासकीय भ्रष्टाचार, मुगल सम्राट से निंदनीय व्यवहार।प्रशासनिक कारण- अंग्रेजों की शासन पद्धति से भारतीयों का असंतुष्ट होना, परंपरागत भारतीय शासन पद्धति की समाप्ति, उच्च पदों पर केवल अंग्रेजों की नियुक्ति तथा अंग्रेजी को सरकारी भाषा बनाना।
सामाजिक और धार्मिक कारण- अंग्रेजों में प्रजातीय भेदभाव तथा श्रेष्ठता की भावना, ईसाई मिशनरियों को प्रोत्साहन, विभिन्न सामाजिक सुधार कार्यक्रम तथा नये नियमों का निर्माण। सैनिक कारण- सैनिकों के वेतन एवं भते में आर्थिक असमानता एवं भेदभाव, उनका मनोवैज्ञानिक एवं धार्मिक उत्पीड़न। तात्कालिक कारण- चर्बीयुक्त कारतूसों का प्रयोग। |
विद्रोह के केंद्र एवं नेतृत्वकर्ता |
दिल्ली – जनरल बख्त खांकानपुर – नाना साहबलखनऊ – वेगम हजरत महल
बरेली – खान बहादुर बिहार – कुंवर सिंह फैजाबाद – मोलवी अहमदउल्ला झांसी – रानी लक्ष्मीबाई इलाहाबाद – लियाकत अली गोरखपुर – गजाधर सिंह फर्रूखाबाद – नवाव तफज्जल हुसैन सुल्तानपुर – शहीद हसन सम्भलपुर – सुरेंद्र साई हरियाणा – राव तुलाराम मथुरा – देवी सिंह मेरठ – कदम सिंह सागर – शेख रमाजान गढ़मंडला – शंकरशाह एवं राजा ठाकुर प्रसाद रायपुर – नारायण सिंह मंदसौर – शाहजादा हुमायूं (फिरोजशाह) |
विद्रोह को दबाने वाले अंग्रेज जनरल |
दिल्ली – लेफ्टिनेंट विलोबी, जॉन निकोलसन, लेफि. हडसन।
कानपुर – सर ह्यू व्हीलर, कोलिन कैम्पबेल। लखनउ – हेनरी लारेंस, ब्रेगेडियर इंग्लिश, हेनरी हैवलॉक, जेम्स आउट्रम, सर कोलिन कैम्पबेल। झांसी – सर हृयू रोज। बनारस – कर्नल जेम्स नील। |
असफलता के कारण |
सीमित क्षेत्र एवं सीमित जनाधार।अंग्रेजों की तुलना में विद्रोहियों के अत्यल्प संसाधन।योग्य नेतृत्व एवं सामंजस्य का अभाव।
एकीकृत विचारधारा एवं राजनीतिक चेतना की कमी। |
प्रकृति |
1857 का विप्लव यद्यपि सफल नहीं हो सका। किंतु उसने लोगों में राष्ट्रीयता की भावना के बीज बोये एवं इस क्रांति के दूरगामी परिणाम हुये। |
प्रभाव |
ताज के अधीन प्रशासन, कम्पनी शासन का उन्मूलन, ब्रिटिश साम्राज्ञी की नयी भारतीय नीति, सेना का पुर्नगठन, जातीय भेदभाव में वृद्धि । |